जिंदगी का मतलब- जिन्दा लाश नहीं है ! जिंदगी जीने का नाम है तड़प तड़प कर पल पल मरने का नहीं ! और ये फैसला धर्म के आधार पर नहीं किया जा सकता !! धर्मं सिर्फ जीवन जीने का ढंग है ये कैसा भी हो सकता है ! कोई इस्लाम के तरीके से जी सकता है , कोई ईसाई धर्मं के तरीके से , अगर एक समूह किसी नए तरीके से जीना शुरू कर दे तो वो धर्म बन जायेगा !तो इससे कोई मतलब नहीं होना चाहिए की कोई धर्म इजाजत देता है या नहीं ,
जिंदगी प्राकृतिक है और म्रत्यु भी प्रकृति की देन है जब कोई इंसान इस हालत में हो की मशीनों के बिना नहीं जी सकता ! तो मृत्यु तो तो उसकी हो चुकी , अब तो आप प्रकृति के विरुद्ध कार्य कर रहे है उसे जिन्दा रखकर !
ऐसी एम लेस , दुखदायी जिंदगी से तो मौत अच्छी , उसे मरने दे