प्राचीनतम इतिहास … श्री राम के
द्वारा मुस्लिम की असलियत
मै काफी दिन से इस्लाम को समझने
की कोशिस कर रहा था … की आखिर ये
क्या है …ये कोई धर्म है या मत या कोई ….
कुछ और ? लेकिन एक बात मुझे ज्यादा परेशन
करती थी इनका हर काम हिन्दू धर्म के
विपरीत करने का …. मुझे हमेशा से
जिज्ञासा बनी रहती थी … इसको जानने
की … और इसको जानने के लिए
कभी किसी का लेख तो कभी इस्लाम
की धार्मिक पुस्तकों को पढता था ..लेकिन
कभी सही उत्तर नहीं मिला …. कोई कुछ
कहता तो कोई कुछ हर एक के अपने अलग
विचार ..हा कुछ बाते जरुर सामान
होती थी ..यदि मै किसी मुस्लिम दोस्त से
पूछता तो .. इस्लाम को पुराण धर्म
बताता था … एक दिन किसी ने कुछ सबाल
रामचरित्र मानस से पूछा जिसका उत्तर के
लिए मुझे रामचरित्र मानस पढनी पढ़ी …
और साथ में वाल्मीकि रामायण भी …………
कहते है राम उल्टा का नाम लेने से
वाल्मीकि जी डाकू से ऋषि बन गए ..
क्युकि राम से बड़ा राम का नाम ये ही बात
सिद्ध होती है यदि आप इतिहास उठा कर
देखे तो .. मुगलों से लेकर अंग्रेजो को भागने में
राम का नाम ही काम आया है … राम नाम
ही चमत्कार था की पत्थर भी पानी में तैर
सकते है … भगवान शिव और हनुमान
जी जो पलभर में भक्तो के दुःख दूर करते
है ..बो भी राम नाम का जप करते है … राम
से बड़ा राम का नाम … राम ही सत्य
है ..इसका ज्ञान मुझे रामायण से हुआ
जो सबालो के उत्तर कही ना मिले वह मुझे
रामायण जी में मिले ….
क्यों ये लोग राम , कृष्ण को कल्पनिक बोलकर
रामायण और महाभारत को झूठा साबित करने
की कोशिस करते है
आपने देखा होगा मुसलमान भाई और उनके धर्म
गुरु… राम , कृष्ण को कल्पनिक बोलकर
रामायण और महाभारत को झूठा साबित करने
की कोशिस करते रहते है ..इनमे ईसाई और
सकुलर लोग भी पीछे नहीं है …
क्यों आखिर इनलोगों को क्या परेशनी है
कभी आपने सोचा है है क्यों ये एक
सोची समझी रणनीति के तहत कभी राम और
कभी कृष्ण जी को बदनाम करते रहते है …
कभी उनके चरित्र और कभी जन्म को लेकर ..
कारण येही है की राम , कृष्ण को कल्पनिक
बोलकर रामायण और महाभारत
को झूठा साबित कर सत्य को छिपाना ….
मक्का शहर से कुछ मील दूर एक साइनबोर्ड
पर स्पष्ट उल्लेख है कि “इस इलाके में गैर-
मुस्लिमों का आना प्रतिबन्धित है…”। यह
काबा के उन दिनों की याद ताज़ा करता है,
जब नये-नये आये इस्लाम ने इस इलाके पर
अपना कब्जा कर लिया था। इस इलाके में गैर-
मुस्लिमों का प्रवेश इसीलिये प्रतिबन्धित
किया गया है, ताकि इस कब्जे के
निशानों को छिपाया जा सके।”
ये हुक्म कुरआन में दिया गया कि गैर-
मुस्लिमों को काबे से दुर कर दो….उन्हे
मस्जिदे-हराम के पास भी नही आने देना
ये सारे प्रमाण ये बताने के लिए हैं
कि क्यों मुस्लिम इतना डरे रहते हैं इस मंदिर
को लेकर..इस मस्जिद के रहस्य को जानने के
लिए कुछ हिंदुओं ने प्रयास किया तो वे क्रूर
मुसलमानों के हाथों मार डाले गए और जो कुछ
बच कर लौट आए वे भी पर्दे के कारण
ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं कर पाए.अंदर
के अगर शिलालेख पढ़ने में सफलता मिल
जाती तो ज्यादा स्पष्ट
हो जाता.इसकी दीवारें हमेशा ढकी रहने के
कारण पता नहीं चल पाता है कि ये किस
पत्थर का बना हुआ है पर प्रांगण में जो कुछ
इस्लाम-पूर्व अवशेष रहे हैं
वो बादामी या केसरिया रंग के हैं..संभव है
काबा भी केसरिया रंग के पत्थर से
बना हो..एक बात और ध्यान देने वाली है
कि पत्थर से मंदिर बनते हैं मस्जिद
नहीं..भारत में पत्थर के बने हुए प्राचीन-
कालीन हजारों मंदिर मिल जाएँगे…
१- मुसलमान कहते हैं कि कुरान ईश्वरीय
वाणी है तथा यह धर्म अनादि काल से
चली आ रही है,परंतु ये बात आधारहीन
तथा तर्कहीन हैं . . .
# किसी भी सीधांत को रद्द करने के लिए
उसको पहले सही तरीक़े से समझ लें. इसलाम
धर्म का दावा है की दुनिया में शुरू में एक
ही धर्म था और वो इस्लाम था. उस वक़्त
उसकी भाषा और ,नाम अलग होगा. फिर
लोगों ने धर्म परिवर्तन किए और असली धर्म
की छबि बदल गयी. फिर अल्लाह ने धर्म
को पुनः स्थापित किया. फिर ये
होता रहा और अल्लाह अपने पैगंबरों से वापस
धर्म को उसकी असली शक्ल में स्थापित
करता रहा. इस सिलसिले में मोहम्मद पैगंबर
अल्लाह के आखरी पैगंबर हैं, और ये इस्लाम
की आखरी शक्ल है, इसके बाद बदलाओ
या बिगाड़ होने पर प्रलय होगा.
ये उसी तरह है जैसे हम अपने संवीधन बदलते हैं.
मौजूदा इस्लाम , इस्लाम धर्म
का आखरी revision है. आप खुद समझ लें के आप
हज़ारों साल पुराना संविधान follow कर
रहे हैं.
2. – आदि धर्म-ग्रंथ संस्कृत में
होनी चाहिए अरबी या फारसी में
नहीं|
भाई, क़ुरान को मुसलमान कब आदि ग्रंथ कहते
हैं. अगर आप ने क़ुरान पढ़ा तो आप देखोगे के उस
में क़ुरान से पहले के ग्रंथों पर भी बात
की गयी है. एक जगह किसी ग्रंथ
को आदि ग्रंथ कहा गया है जिस के बारे में हम
लोग खुद कहते हैं के शायद ये वेदों के बारे में है
#बहुत सी भाषाओं में बहुत से शब्द मिलते जुलते
हैं, किसी भाषा में
अल्लाह शब्द भी संस्कृत शब्द अल्ला से बना है
जिसका अर्थ देवी होता है|
जिस प्रकार हमलोग मंत्रों में “या” शब्द
का प्रयोग करते हैं देवियों को पुकारने में जैसे
“या देवी सर्वभूतेषु….”, “या वीणा वर ….”
वैसे ही मुसलमान भी पुकारते हैं
“या अल्लाह”..इससे सिद्ध होता है कि ये
अल्लाह शब्द भी ज्यों का त्यों वही रह
गया बस अर्थ बदल दिया गया|
एक मुस्लिम भाई ने कहा जनाब आपसे किसने
कहा कि इसलाम सातवी-आठवीं सदी में हुआ…
जब से दुनिया बनी है तब से इस्लाम है…
अल्लाह ने दुनिया में 1,24,000 नबी और
रसुल भेजे और सब पर किताबे नाज़िल की…
कुरआन में नाम से 25 नबी और 4
किताबों का ज़िक्र है…. कुरआन में बताये गये
२५ नबी व रसुलों के नाम बता रहा हूं…उनके
नामों के इंग्लिश में वो नाम दिये है जिन
नामों से इन नबीयों का ज़िक्र “बाईबिल” में
है….
1. आदम अलैहि सलाम (Adam)
2. इदरीस अलैहि सलाम (Enoch)
3. नुह अलैहि सलाम (Noah)
4. हुद अलैहि सलाम (Eber)
5. सालेह अलैहि सलाम (Saleh)
6. ईब्राहिम अलैहि सलाम (Abraham)
7. लुत अलैहि सलाम (Lot)
8. इस्माईल अलैहि सलाम (Ishmael)
9. इशाक अलैहि सलाम (Isaac)
10. याकुब अलैहि सलाम (Jacob)
11. युसुफ़ अलैहि सलाम (Joseph)
12. अय्युब अलैहि सलाम (Job)
13. शुऎब अलैहि सलाम (Jethro)
14. मुसा अलैहि सलाम (Moses)
15. हारुन अलैहि सलाम (Aaron)
16. दाऊद अलैहि सलाम (David)
17. सुलेमान अलैहि सलाम (Solomon)
18. इलियास अलैहि सलाम (Elijah)
19. अल-यासा अलैहि सलाम (Elisha)
20. युनुस अलैहि सलाम (Jonah)
21. धुल-किफ़्ल अलैहि सलाम (Ezekiel)
22. ज़करिया अलैहि सलाम (Zechariah)
23. याहया अलैहि सलाम (John the
Baptist)
24. ईसा अलैहि सलाम (Jesus)
25. आखिरी रसुल सल्लाहो अलैहि वस्सलम
(Ahmed)
इन नबीयों में से छ्ठें नबी “ईब्राहिम
अलैहि सलाम” जिन्होने “काबा” को तामिल
किया था उनका जन्म 1900 ईसा पूर्व हुआ
था….
# तो भाई केबल २५ नवी की जानकारी के
दम पर ये इस्लाम को पुराना धर्म बोल रहे है
भाई बाकि 1,24,000 नबी और रसुल
का क्या होगा ?????????
ला इलाहा इल्लल्लाह, मुहम्मद उर-रसूलुल्लाह
इस कलमे का अर्थ मुहम्मद ने बताया है
की ईश्वर एक है और मुहम्मद उसके पैगम्बर है
… जब की सब जानते है की इला एक
देवी थी जिनकी पूजा होती थी और अल्लाह
कोन था आज हम इस को भी समझेगे की सत्य
क्या था ….?
और बहुत कुछ ये भी पढ़ा ….
अरब की प्राचीन समृद्ध वैदिक संस्कृति और
भारत।।।।।
अरब देश का भारत, भृगु के पुत्र शुक्राचार्य
तथा उनके पोत्र और्व से ऐतिहासिक संबंध
प्रमाणित है, यहाँ तक कि “हिस्ट्री ऑफ
पर्शिया” के लेखक साइक्स का मत है कि अरब
का नाम और्व के ही नाम पर पड़ा, जो विकृत
होकर “अरब” हो गया। भारत के उत्तर-
पश्चिम में इलावर्त था, जहाँ दैत्य और दानव
बसते थे, इस इलावर्त में एशियाई रूस
का दक्षिणी-पश्चिमी भाग, ईरान
का पूर्वी भाग तथा गिलगित
का निकटवर्ती क्षेत्र सम्मिलित था।
आदित्यों का आवास स्थान-देवलोक भारत के
उत्तर-पूर्व में स्थित हिमालयी क्षेत्रों में
रहा था। बेबीलोन की प्राचीन गुफाओं में
पुरातात्त्विक खोज में जो भित्ति चित्र मिले
है, उनमें विष्णु को हिरण्यकशिपु के भाई
हिरण्याक्ष से युद्ध करते हुए उत्कीर्ण
किया गया है।
उस युग में अरब एक बड़ा व्यापारिक केन्द्र
रहा था, इसी कारण देवों, दानवों और
दैत्यों में इलावर्त के विभाजन को लेकर 12
बार युद्ध ‘देवासुर संग्राम’ हुए। देवताओं के
राजा इन्द्र ने
अपनी पुत्री ज्यन्ती का विवाह शुक्र के साथ
इसी विचार से किया था कि शुक्र उनके
(देवों के) पक्षधर बन जायें, किन्तु शुक्र
दैत्यों के ही गुरू बने रहे। यहाँ तक कि जब
दैत्यराज बलि ने शुक्राचार्य का कहना न
माना, तो वे उसे त्याग कर अपने पौत्र और्व
के पास अरब में आ गये और वहाँ 10 वर्ष रहे।
साइक्स ने अपने इतिहास ग्रन्थ “हिस्ट्री ऑफ
पर्शिया” में लिखा है कि ‘शुक्राचार्य लिव्ड
टेन इयर्स इन अरब’। अरब में शुक्राचार्य
का इतना मान-सम्मान हुआ कि आज जिसे
‘काबा’ कहते है, वह वस्तुतः ‘काव्य
शुक्र’ (शुक्राचार्य) के सम्मान में निर्मित
उनके आराध्य भगवान शिव का ही मन्दिर है।
कालांतर में ‘काव्य’ नाम विकृत होकर ‘काबा’
प्रचलित हुआ। अरबी भाषा में ‘शुक्र’ का अर्थ
‘बड़ा’ अर्थात ‘जुम्मा’ इसी कारण
किया गया और इसी से ‘जुम्मा’ (शुक्रवार)
को मुसलमान पवित्र दिन मानते है।
“बृहस्पति देवानां पुरोहित आसीत्,
उशना काव्योऽसुराणाम्”-जैमिनिय
ब्रा.(01-125)
अर्थात बृहस्पति देवों के पुरोहित थे
और उशना काव्य (शुक्राचार्य)
असुरों के।
प्राचीन अरबी काव्य संग्रह गंथ ‘सेअरूल-ओकुल’
के 257वें पृष्ठ पर हजरत मोहम्मद से 2300
वर्ष पूर्व एवं ईसा मसीह से 1800 वर्ष
पूर्व पैदा हुए लबी-बिन-ए-अरव्तब-बिन-ए-
तुरफा ने अपनी सुप्रसिद्ध कविता में भारत
भूमि एवं वेदों को जो सम्मान दिया है, वह
इस प्रकार है-
“अया मुबारेकल अरज मुशैये
नोंहा मिनार हिंदे।
व अरादकल्लाह मज्जोनज्जे जिकरतुन।
1।
वह लवज्जलीयतुन ऐनाने सहबी अरवे
अतुन जिकरा।
वहाजेही योनज्जेलुर्ररसूल मिनल
हिंदतुन।2।
यकूलूनल्लाहः या अहलल अरज आलमीन
फुल्लहुम।
फत्तेबेऊ जिकरतुल वेद हुक्कुन मालन
योनज्वेलतुन।3।
वहोबा आलमुस्साम वल यजुरमिनल्लाहे
तनजीलन।
फऐ नोमा या अरवीयो मुत्तवअन
योवसीरीयोनजातुन।4।
जइसनैन हुमारिक अतर नासेहीन का-अ-
खुबातुन।
व असनात अलाऊढ़न व होवा मश-ए-
रतुन।5।”
अर्थात- (1) हे भारत की पुण्यभूमि (मिनार
हिंदे) तू धन्य है, क्योंकि ईश्वर ने अपने ज्ञान
के लिए तुझको चुना। (2) वह ईश्वर का ज्ञान
प्रकाश, जो चार प्रकाश स्तम्भों के सदृश्य
सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करता है, यह
भारतवर्ष (हिंद तुन) में ऋषियों द्वारा चार
रूप में प्रकट हुआ। (3) और परमात्मा समस्त
संसार के मनुष्यों को आज्ञा देता है कि वेद,
जो मेरे ज्ञान है, इनके अनुसार आचरण करो।
(4) वह ज्ञान के भण्डार साम और यजुर है,
जो ईश्वर ने प्रदान किये। इसलिए, हे मेरे
भाइयों! इनको मानो, क्योंकि ये हमें मोक्ष
का मार्ग बताते है। (5) और दो उनमें से रिक्,
अतर (ऋग्वेद, अथर्ववेद) जो हमें भ्रातृत्व
की शिक्षा देते है, और जो इनकी शरण में आ
गया, वह कभी अन्धकार को प्राप्त
नहीं होता।
इस्लाम मजहब के प्रवर्तक मोहम्मद स्वयं
भी वैदिक परिवार में हिन्दू के रूप में जन्में थे,
और जब उन्होंने अपने हिन्दू परिवार
की परम्परा और वंश से संबंध तोड़ने और स्वयं
को पैगम्बर घोषित करना निश्चित किया,
तब संयुक्त हिन्दू परिवार छिन्न-भिन्न
हो गया और काबा में स्थित महाकाय
शिवलिंग (संगे अस्वद) के रक्षार्थ हुए युद्ध में
पैगम्बर मोहम्मद के चाचा उमर-बिन-ए-
हश्शाम को भी अपने प्राण गंवाने पड़े। उमर-
बिन-ए-हश्शाम का अरब में एवं केन्द्र
काबा (मक्का) में इतना अधिक सम्मान
होता था कि सम्पूर्ण अरबी समाज,
जो कि भगवान शिव के भक्त थे एवं वेदों के
उत्सुक गायक तथा हिन्दू देवी-देवताओं के
अनन्य उपासक थे, उन्हें अबुल हाकम अर्थात
‘ज्ञान का पिता’ कहते थे। बाद में मोहम्मद के
नये सम्प्रदाय ने उन्हें ईष्यावश अबुल जिहाल
‘अज्ञान का पिता’ कहकर उनकी निन्दा की।
जब मोहम्मद ने मक्का पर आक्रमण किया, उस
समय वहाँ बृहस्पति, मंगल, अश्विनी कुमार,
गरूड़, नृसिंह की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित थी।
साथ ही एक
मूर्ति वहाँ विश्वविजेता महाराजा बलि की
भी थी, और दानी होने की प्रसिद्धि से
उसका एक हाथ सोने का बना था। ‘Holul’ के
नाम से अभिहित यह मूर्ति वहाँ इब्राहम और
इस्माइल की मूर्त्तियो के बराबर रखी थी।
मोहम्मद ने उन सब मूर्त्तियों को तोड़कर
वहाँ बने कुएँ में फेंक दिया, किन्तु तोड़े गये
शिवलिंग का एक टुकडा आज भी काबा में
सम्मानपूर्वक न केवल प्रतिष्ठित है,वरन् हज
करने जाने वाले मुसलमान उस काले
(अश्वेत) प्रस्तर खण्ड अर्थात ‘संगे
अस्वद’ को आदर मान देते हुए चूमते है।
प्राचीन अरबों ने सिन्ध को सिन्ध
ही कहा तथा भारतवर्ष के अन्य
प्रदेशों को हिन्द निश्चित किया। सिन्ध से
हिन्द होने की बात बहुत ही अवैज्ञानिक है।
इस्लाम मत के प्रवर्तक मोहम्मद के पैदा होने
से 2300 वर्ष पूर्व यानि लगभग 1800
ईश्वी पूर्व भी अरब में हिंद एवं हिंदू शब्द
का व्यवहार ज्यों का त्यों आज ही के अर्थ में
प्रयुक्त होता था।
अरब की प्राचीन समृद्ध संस्कृति वैदिक
थी तथा उस समय ज्ञान-विज्ञान, कला-
कौशल, धर्म-संस्कृति आदि में भारत (हिंद) के
साथ उसके प्रगाढ़ संबंध थे। हिंद नाम
अरबों को इतना प्यारा लगा कि उन्होंने उस
देश के नाम पर अपनी स्त्रियों एवं बच्चों के
नाम भी हिंद पर रखे ।
अरबी काव्य संग्रह ग्रंथ ‘ सेअरूल-ओकुल’ के
253वें पृष्ठ पर हजरत मोहम्मद के
चाचा उमर-बिन-ए-हश्शाम की कविता है
जिसमें उन्होंने हिन्दे यौमन एवं गबुल हिन्दू
का प्रयोग बड़े आदर से किया है । ‘उमर-बिन-
ए-हश्शाम’ की कविता नयी दिल्ली स्थित
मन्दिर मार्ग पर श्री लक्ष्मीनारायण
मन्दिर (बिड़ला मन्दिर) की वाटिका में
यज्ञशाला के लाल पत्थर के स्तम्भ (खम्बे) पर
काली स्याही से लिखी हुई है, जो इस प्रकार
है -
” कफविनक जिकरा मिन उलुमिन तब
असेक ।
कलुवन अमातातुल हवा व तजक्करू ।1।
न तज खेरोहा उड़न एललवदए लिलवरा ।
वलुकएने जातल्लाहे औम असेरू ।2।
व अहालोलहा अजहू अरानीमन महादेव
ओ ।
मनोजेल इलमुद्दीन मीनहुम व सयत्तरू ।
3।
व सहबी वे याम फीम कामिल हिन्दे
यौमन ।
व यकुलून न लातहजन फइन्नक तवज्जरू ।
4।
मअस्सयरे अरव्लाकन हसनन कुल्लहूम ।
नजुमुन अजा अत सुम्मा गबुल हिन्दू ।5।
अर्थात् – (1) वह मनुष्य, जिसने सारा जीवन
पाप व अधर्म में बिताया हो, काम, क्रोध में
अपने यौवन को नष्ट किया हो। (2)
अदि अन्त में उसको पश्चाताप हो और भलाई
की ओर लौटना चाहे, तो क्या उसका कल्याण
हो सकता है ? (3) एक बार भी सच्चे हृदय से
वह महादेव जी की पूजा करे, तो धर्म-मार्ग
में उच्च से उच्च पद को पा सकता है। (4) हे
प्रभु ! मेरा समस्त जीवन लेकर केवल एक दिन
भारत (हिंद) के निवास का दे दो,
क्योंकि वहाँ पहुँचकर मनुष्य जीवन-मुक्त
हो जाता है। (5) वहाँ की यात्रा से सारे
शुभ कर्मो की प्राप्ति होती है, और आदर्श
गुरूजनों (गबुल हिन्दू) का सत्संग मिलता है
मुसलमानों के पूर्वज कोन?(जाकिर नाइक के
चेलों को समर्पित लेख)
स्व0 मौलाना मुफ्ती अब्दुल कयूम
जालंधरी संस्कृत ,हिंदी,उर्दू,फारसी व
अंग्रेजी के जाने-माने विद्वान् थे।
अपनी पुस्तक “गीता और कुरआन “में उन्होंने
निशंकोच स्वीकार किया है कि,”कुरआन”
की सैकड़ों आयतें गीता व उपनिषदों पर
आधारित हैं।
मोलाना ने मुसलमानों के पूर्वजों पर
भी काफी कुछ लिखा है । उनका कहना है
कि इरानी “कुरुष ” ,”कौरुष “व अरबी कुरैश
मूलत : महाभारत के युद्ध के बाद भारत से
लापता उन २४१६५ कौरव सैनिकों के वंसज
हैं, जो मरने से बच गए थे।
अरब में कुरैशों के अतिरिक्त “केदार” व
“कुरुछेत्र” कबीलों का इतिहास भी इसी तथ्य
को प्रमाणित करता है। कुरैश वंशीय
खलीफा मामुनुर्र्शीद(८१३-८३५) के
शाशनकाल में निर्मित खलीफा का हरे रंग
का चंद्रांकित झंडा भी इसी बात को सिद्ध
करता है।
कौरव चंद्रवंशी थे और कौरव अपने आदि पुरुष
के रूप में चंद्रमा को मानते थे। यहाँ यह तथ्य
भी उल्लेखनीय है कि इस्लामी झंडे में
चंद्रमां के ऊपर “अल्लुज़ा” अर्ताथ शुक्र तारे
का चिन्ह,अरबों के कुलगुरू “शुक्राचार्य
“का प्रतीक ही है। भारत के
कौरवों का सम्बन्ध शुक्राचार्य से
छुपा नहीं है।
इसी प्रकार कुरआन में “आद “जाती का वर्णन
है,वास्तव में द्वारिका के जलमग्न होने पर
जो यादव वंशी अरब में बस गए थे,वे
ही कालान्तर में “आद” कोम हुई।
अरब इतिहास के विश्वविख्यात विद्वान्
प्रो० फिलिप के अनुसार
२४वी सदी ईसा पूर्व में “हिजाज़” (मक्का-
मदीना) पर जग्गिसा(जगदीश) का शासन
था।२३५० ईसा पूर्व में शर्स्किन ने
जग्गीसी को हराकर अंगेद नाम से
राजधानी बनाई। शर्स्किन वास्तव में
नारामसिन अर्थार्त नरसिंह
का ही बिगड़ा रूप है। १००० ईसा पूर्व
अन्गेद पर गणेश नामक राजा का राज्य था।
६ वी शताब्दी ईसा पूर्व हिजाज पर हारिस
अथवा हरीस का शासन था। १४वी सदी के
विख्यात अरब इतिहासकार “अब्दुर्रहमान
इब्ने खलदून ” की ४० से अधिक भाषा में
अनुवादित पुस्तक “खलदून का मुकदमा” में
लिखा है कि ६६० इ० से १२५८ इ० तक
“दमिश्क” व “बग़दाद”
की हजारों मस्जिदों के निर्माण में
मिश्री,यूनानी व भारतीय वातुविदों ने
सहयोग किया था। परम्परागत सपाट छत
वाली मस्जिदों के स्थान पर शिव
पिंडी कि आकृति के गुम्बदों व उस पर अष्ट दल
कमल कि उलट उत्कीर्ण शैली इस्लाम
को भारतीय वास्तुविदों की देन है।
इन्ही भारतीय वास्तुविदों ने “बैतूल
हिक्मा” जैसे ग्रन्थाकार का निर्माण
भी किया था।
अत: यदि इस्लाम वास्तव में
यदि अपनी पहचान कि खोंज करना चाहता है
तो उसे इसी धरा ,संस्कृति व प्रागैतिहासिक
ग्रंथों में स्वं
को खोजना पड़ेगा……………………………..
भाइयो एक सत्य में
आपको बताना चाहुगा की मुहम्मद को लेकर
मुसलमानों में जो गलतफैमी है की मुहम्मद ने
अरब से अत्याचारों को दूर किया … केबल
अत्याचारियो को मारा , समाज
की बुरयियो को दूर किया अरब में भाई भाई
का दुश्मन था , स्त्रियो की दशा सुधारी …
मुहमद एक अनपढ़ (उम्मी ) था …. आदि ..सत्य
क्या है आप उस समय की जानकारियों से
पता लगा सकते है … जब की उस समय अरब में
सनातन धर्म ही था ..इसके कई प्रमाण है
१- जब मुहम्मद का जन्म हुआ
तो पिता की म्रत्यु हो चुकी थी ..
मा भी कुछ सालो बाद चल बसी .. मुहम्मद
की देखभाल उनके चाचा ने की … यदि समाज
में लालच , लोभ होता तो क्या उनके
चाचा उनको पलते ?
२- खालिदा नामक पढ़ी लिखी स्त्री का खुद
का व्यापर होना सनातन धर्म में
स्त्रियो की आजादी का सबुत है… मुहमम्द
वहा पर नोकरी करते थे ?
३- ३ बार शादी के बाद
भी विधवा स्त्री का खुद मुहम्मद से
शादी का प्रस्ताब ? स्त्रियो को खुद अपने
लिए जीवन साथी चुने और विधवा स्त्री होने
पर भी शादी और व्यापर की आजादी …
सनातन धर्म के अंदर ..
४- खालिदा का खुद शिक्षित होना सनातन
धर्म में स्त्रियो को शिक्षा का सबुत है
५- मुहम्मद का २५ साल का होकर ४० साल
की स्त्री से विवाह ..किन्तु किसी ने कोई
हस्तक्षेप नहीं किया ..सनातन धर्म में हर एक
को आजादी ..कोई बंधन नहीं
६- मुहम्मद का धार्मिक प्रबचन
देना किसी का कोई विरोध ना होना जब
तक सनातन धर्म के अंदर नये धर्म का प्रचार
७- मुहम्मद यदि अनपढ़ होते तो क्या व्यापर
कर सकते थे ? नहीं ..मुहम्मद पहले अनपढ़ थे
लेकिन बाद में उनकी पत्नी और साले ने
उनको पढ़ना लिखना सीखा दिया था …
सबूत मरते समय मुहम्मद का कोई वसीयत
ना बनाने पर कलम और कागज
का ना मिलना ..और कुछ लोगो का उनपर
वसीयत ना बनाने पर रोष करना …
मुहम्मद को उनकी पत्नी ने सारे धार्मिक
पुस्तकों जैसे रामायण , गीता , महाभारत ,
वेद, वाईविल, और यहूदी धार्मिक
पुस्तकों को पढ़ कर सुनाया था और
पढ़ना लिखना सीखा दिया था , आप
किसी को लिखना पढ़ना सीखा सकते
हो लेकिन बुद्धि का क्या ?…जो आज तक उसके
मानने बालो की बुद्धि पर असर है ..
जो कुरान और हदीश में मुहम्मद में
लिखा या उनके कहानुसार लिखा गया बाद
में , लेकिन किसी को कितना ही कुछ
भी सुना दो लेकिन व्यक्ति की सोच को कोन
बदल सकता है मुझे तुलसीदास जी की चोपाई
याद आ रही है जो मुहम्मद पर सटीक बैठती है
ढोल , गवाँर ,शूद्र, पसु , नारी , सकल
ताडना के अधिकारी …..
आप किसी कितना ज्ञान देदो बो बेकार
हो जाता है जब कोई किसी चीज का गलत
अर्थ लगा कर समझता है गवाँर बुद्धि में
क्या आया और उसने क्या समझा ये आप कुरान में
जान सकते है …. कुरान में वेदों , रामायण ,
गीता , पुराणों का ज्ञान मिलेगा लेकिन
उसका अर्थ गलत मिलेगा ………
चलिए आपको कुछ रामायण जी से इस्लाम
की जानकारी लेते है ………
ये उस समय की बात है जन राम और लक्ष्मण
जी और भरत आपस में सत्य कथाओ को उन रहे
थे .. तब प्रभु श्री राम ने राजा इल
की कथा सुनायी जो वाल्मीकि रामायण में
उत्तरकांड में आती है .. मै श्लोको के अनुसार
ना ले कर सारांश में बता रहा हू ……
उत्तरकांड का ८७ बा सर्ग :=
प्रजापति कर्दम के पुत्र राजा इल बहिकदेश
(अरब ईरान क्षेत्र के जो इलावर्त क्षेत्र
कहलाता था ) के राजा थे , बो धर्म और
न्याय से राज्य करते थे .. सपूर्ण संसार के
जीव , राक्षस , यक्ष , जानबर आदि उनसे भय
खाते थे .एक बार राजा अपने सैनिको के साथ
शिकार पर गए उन्होंने कई हजार हिसक पशुओ
का वध किया था शिकार में ,राजा उस
निर्जन प्रदेश में गए जहा महासेन
(स्वामी कार्तीय) का जन्म हुआ
था बहा भगवन शिव अपने को स्त्री रूप में
प्रकट करके देवी पार्वती का प्रिय पात्र
बनने करने की इच्छा से वह पर्वतीय झरने के
पास उनसे विहार कर रहे थे .. वह जो कुछ
भी चराचर प्राणी थे वे सब स्त्री रूप में
हो गए थे , राजा इल भी सेवको के साथ
स्त्रीलिंग में परिणत हो गए …. शिव
की शरण में गए लेकिन शिवजी ने पुरुषत्व
को छोड़ कर कुछ और मानने को कहा ,
राजा दुखी हुए फिर बो माँ पार्वती जी के
पास गए और माँ की वंदना की .. फिर
माँ पार्वती ने राजा से बोली में आधा भाग
आपको दे सकती हू आधा भगवन शिव ही जाने
… राजा इल को हर्ष हुआ .. माँ पार्वती ने
राजा की इच्छानुसार वर दी की १ माह
पुरुष राजा इल , और एक माह
नारी इला रहोगे जीवन भर .. लेकिन
दोनों ही रूपों में तुम अपने एक रूप का स्मरण
नहीं रहेगा ..इस प्रकार राजा इल और
इला बन कर रहने लगे
८८ बा सर्ग := चंद्रमा के पुत्र पुत्र बुध
( चंद्रमा और गुरु ब्रस्पति की पत्नी के
पुत्र ) जो की सरोवर में ताप कर रहे थे
इला ने उनको और उन्होंने इला को देखा …मन
में आसक्त हो गया उन्होंने इला की सेविका से
जानकारी पूछी ..बाद में बुध ने
पुण्यमयी आवर्तनी विधा का आवर्तन
(स्मरण ) किया और राजा के विषय में सम्पुण
जानकारी प्राप्त करली , बुध ने सेविकाओ
को किंपुरुषी (किन्नरी) हो कर पर्वत के
किनारे रहने और निवास करने को बोला .. आगे
चल कर तुम सभी स्त्रियों को किंपुरुष प्राप्त
होगे .. बुध की बात सुन किंपुरुषी नाम से
प्रसिद्ध हुयी सेविकाए जो संख्या में बहुत
थी पर्वत पर रहने लगी ( इस प्रकार किंपुरुष
जाति का जन्म हुआ )
८९ सर्ग := बुध का इला को अपना परिचय
देना और इला का उनके साथ मे में रमण
करना… एक माह राजा इल के रूप में एक माह
रूपमती इला के रूप में रहना … इला और बुध
का पुत्र पुरुरवा हुए
९० सर्ग;= राजा इल को अश्वमेध के अनुष्ठन
से पुरुत्व की प्राप्ति बुध के द्वारा रूद्र
( शिव ) की आराधना करना और यज्ञ
करना मुनियों के द्वारा ..महादेव को दरशन
देकर राजा इल को पूर्ण पुरुषत्व देना …
राजा इल का बाहिक देश छोड़ कर मध्य
प्रदेश (गंगा यमुना संगम के निकट )
प्रतिष्ठानपुर बसाया बाद में राजा इल के
ब्रहम लोक जाने के बाद पुरुरवा का राज्य के
राजा हुए
- इति समाप्त
आज के लेख से आपके प्रश्न और उसके जबाब …..
1. इस्लाम में बोलते है की इस्लाम सनातन
धर्म है और बहुत पुराना है ? और अल्लाह कोन
था ? कलमा में क्या है ?
# भाई आसान सबाल का आसान उत्तर है
की सनातन धर्म सम्पूर्ण संसार में था और
लोगो का विश्वास धर्म पर बह