Monday, October 29, 2012

Cervical Spondylosis and its cure

सरवाईकल स्पान्डयलोसिस(Cervical Spondylosis)

इधर के कुछ सालों मे अगर हम गौर करें तो सरवाईकल स्पान्डयलोसिस के रोगियों मे बेतहाशा वृद्दि हुयी है। ओ पी डी मे आने वाले रोगियों मे जहाँ इक्का-दुक्का ही रोगी इस रोग के नजर आते थे वहीं अब काफ़ी बडी संख्या इसकी नजर आती है। आयु, वर्ग विशेष से भी अब इसका लेना-देना न रहा। 15 वर्ष की आयु से बढती हुयी उभ्र के लोगों मे यह समस्या आम देखी जा सकती है। इस लेख मे मेरुदंड की संरचना ,इस मशीनी समस्या के कारण, लक्षण और महत्वूर्ण जाँचे, , फ़िजयोथिरेपी और एकयूप्रेशर की उपयोगिता और होम्योपैथिक औषधियों की भूमिका पर एक नजर देखेगें। जहाँ यह लेख आम होम्योपैथिक चिकित्सक की याददाश्त को रिफ़्रेश करेगा वहीं आम लोगों को भी इस समस्या और इससे उत्पन्न होने वाले लक्षणों से बचने के बारे मे भी उपयोगी जानकारी देगा। ( हाँ , एक आवशयक सलाह : आम जन के लिये : इस लेख मे दी गयी फ़िजयोथिरेपी और एकयूप्रेशर की व्यायामों और होम्योपैथिक औषधियों को आजमाने की चेष्टा न करें, आपका चिकित्सक और फ़िजयोथिरेपिस्ट ही आपको सर्वश्रेष्ठ सलाह दे सकता है। )मेरुदण्ड की संरचना:

cev 1
आकृति नं0 1यह एक सम्पूर्ण मेरुदंड की संरचना है , ऊपर दिये चित्र से स्पष्ट है कि मेरुदण्ड के पाँच हिस्से हैं-
    1-सर्वाईकल (Cervical)
    2-थोरॅसिक (Thoracic)
    3-लम्बर (Lumbar)
    4-सैकरम (Sacrum)
    5-कौसिक्स (coccyx)
    सर्वाईकल स्पाईन मेरुदण्ड की पाँच वर्टीबरी से मिल कर बनी होती है। C1-C7 जहाँ C सरवईकल का सूचक है। C1 सिर के पृष्ठ भाग के और C7 स्पाइन के थोरेसिक हिस्से से सटी रहती है।
    लक्षण और कारणरोग के लक्षण कोई आवशयक नहीं कि सिर्फ़ गर्दन की दर्द और जकडन को ही लेकर आयें। विभिन्न रोगियों मे अलग -2 तरह के लक्षण देखे जाते हैं:
  • गर्दन की दर्द और जकडन, गर्दन स्थिर रहना, बहुत कम या न घूमना।
  • चक्कर आना ।
  • कन्धे का दर्द, कन्धे की जकडन और बाँह की नस का दर्द ।
  •  ऊगलियों और हथेलियों का सुन्नपन 
  •  गर्दन की दर्द के प्रमुख कारण:
      वजह अनेक लेकिन सार एक, अनियमित और अनियंत्रित लाइफ़ स्टाईल। वजह आप स्वंय खोजें:
  • टेढे-मेढे होकर सोना, हमेशा लचक्दार बिछौनों पर सोना, आरामदेह सोफ़ों तथा गद्देदार कुर्सी पर घटो बैठे रहना, सोते समय ऊँचा सिरहाना (तकिया) रखना, लेट कर टी वी देखना ।
  • गलत ढंग से वाहन चलाना
  • बहुत झुक कर बैठ कर पढना, लेटकर पढना ।
  • घटों भर सिलाई, बुनाई, व कशीदा करने वाले लोगों।
  • गलत ढंग से और शारीरिक शक्ति से अधिक बोझ उठाना
  • व्यायाम न करना और चिंताग्रस्त जीवन जीना।
  • संतुलित भोजन न लेना, भोजन मे विटामिन डी की कमी रहना, अधिक मात्रा मे चीनी और मीठाईयाँ खाना।
  • गठिया से पीडित रोगी
  • घंटों कम्पयूटर के सामने बैठना और ब्लागिगं करना ) महत्वपूर्ण जाँचे:
  • X-rays
  • Computed Tomography
  • Magnetic Resonance Imaging
  • Myelogram/CT
  • Discography अधिकतर रोगियों मे X-rays ही हकीकत बयान कर देते हैं। सरवाईकल डिस्क मे आने वाली आम समस्यायें नीचे दिये चित्र से स्पष्ट हो जाती हैं। इनमें अधिकतर रोगियों मे interverteberal disc spaces का कम हो जाना और osteophyte का बनना मुख्य है। देखें नीचे आकृति नं0 2
    CERV2CERV4
    CERV3
    रोग निवारण के लिये प्रचलित उपचार तरीके:

    मुसीबत मोल लेने से परहेज बेहतर:

    मुसीबत न आये इसलिये यह आवशयक है कि उन मुसीबतों को बुलावा न दिया जाय । पीठ की दर्द के लिये भी यही सावधानियाँ काम आयेगीं। इसलिये निम्म बातों का ध्यान रखें और जीवन सुचारु रुप से जियें:
  • Correct way of sitting जब भी कुर्सी या सोफ़े पर बैठें तो पीठ को सीधी रखें तथा घुटने नितम्बों से ऊँचे होने चाहिये।
  • चलते समय शरीर सीधी अवस्था मे होना चाहिये।
  • गाडी चलाते समय अपनी पीठ को सीधी रखें।
  • कोमल, फ़ोम के गद्दो पर लेटना छोडकर तख्त का प्रयोग करें ।
  • घर का काम करते समय पीठ को सीधी रखें।
  • गर्दन की सिकाई 1-Cervical diathermy
    2-Ultrasound radiations
    3-Hot fomentatations
    तीव्र दर्द के हालात मे गर्म पानी मे नमक डाल कर सिकाई करें। यह क्रम दिन मे कम 3-4 बार अवश्य करें। दर्द को जल्द आराम देने मे यह काफ़ी लाभदायक है।
    तकिये (pillow) की बनावटसिरहाने को लेकर लोगों मे अलग- 2 तरह की भ्रान्तियॉ हैं। सरवाईकल स्प्पान्डयलोसिस से पीडित व्यक्ति या तो तकिया लगाना ही बन्द कर देता है या फ़िर अन्य सहारे का प्रयोग करने लगता है जैसे तौलिये को मोड कर सिर के नीचे रखना। लेकिन यह सब प्रयोग अन्तः उसके लिये नुकसान ही पैदा करते हैं। नीचे दी गयी आकृति न 3 के अनुसार तकिया बनवायें जो बाजार मे बिक रहे सिरहाने की तुलना मे सुविधाजनक रहता है।pillow
    Cervical Collar ( सरवाइकल कौलर) और Cervical Traction ( सरवाइकल ट्रेक्शन )सरवाईकल स्प्पान्डयलोसिस के हर रोगी मे कौलर और ट्रेक्शन की आवशयकता नही पडती , लेकिन आजकल इसका प्रयोग कई जगह बेवजह भी होता रहता है। लेकिन रोगी के रोग की वजह के अनुसार इसका महत्व भी है।
    जाडे आते ही सरवाईकल स्प्पान्डयलोसिस के रोगियों की समस्यायें बढनी शुरु हो जाती हैं, बाजार मे मिलने वाले कालर के अपेक्षा आम प्रयोग होने वाले मफ़लर को गले मे circular way मे इस तरह बाधें कि गर्दन का घुमाव नीचे की तरफ़ अधिक न हो। देखने मे भी यह अट-पटा नहीं लगता और गर्दन की माँसपेशियों को ठंडक से भी बचाव अच्छी तरह से कर लेता है।
    एकयूप्रेशर (Acupressure)बहुत से चिकित्सक संभवत: एकयूप्रेशर की उपयोगिता से सहमत नहीं रहते हैं, लेकिन सरवाईकल स्प्पान्डयलोसिस के कई रोगियों मे मैने इस पद्दति को बखूबी आजमाया है , भले ही यह कारणों को दूर करने मे सक्षम न हो लेकिन दर्द की तीव्रता को यह काफ़ी जल्द आराम दे देती है। सरवाईकल स्प्पान्डयलोसिस मे प्रयुक्त होने वाले व्यायामों के चित्र यहाँ दिये हैं, जिन एक्यूप्रेशर व्यायामों को मै अक्सर प्रयोग कराता हूँ उनके चित्र नीचे दिये हैं।
    acu 5ACU6
    ACU7ACU8
    सरवाईकल स्प्पान्डयलोसिस मे फ़िजयोथिरेपी की भूमिका:सरवाईकल व्यायाम दर्द की तीव्रता को घटाते हैं ही साथ मे अकडे हुये जोडों और माँसपेशियों को भी सही करते हैं ।
    मूलत: दो प्रकार के व्यायामों पर सरवाईकल स्प्पान्डयलोसिस मे जोर रहता है:
    1-Range of motion exercises
    2-Isometric exercises
    Range of motion exercises
    नीचे दी हुयी आकृति motion exercises को स्पष्ट कर रही है:
    Range of motion exercises
  • अपने सिर को दायें तरफ़ कन्धे तक झुकायें , थोडा रूकें और तत्पश्चात मध्य मे लायें। यही क्रम बायें तरफ़ भी करें।
  • अपनी ठुड्डी ( chin) को सीने की तरफ़ झुकायें, रुकें,तत्पश्चात सिर को पीछे ले जायें।
  • अपने सिर को बायें तरफ़ के कान की तरफ़ मोडें, रुकें और तत्पश्चात मध्य मे लायें। यही क्रम बायें तरफ़ भी करें।
    Isometric exercises
Isometric exercises को करते समय साँस को रोके नहीं। हर व्यायाम को 5-6 बार तक करें और इसके बाद शरीर को ढीला छोड दें।
  • अपने माथे को हथेलियों पर दबाब दे और सर को अपनी जगह से हिलने न दें।
  • अपनी हथेलियों का दबाब सिर के बायें तरफ़ दे और सिर को हिलने न दें। यही क्रम दायें तरफ़ भी करें।
  • अपनी दोनों हथेलियों का दबाब सिर के पीछे दें और सिर को स्थिर रखें।
  • अपनी हथेलियों का दबाब माथे पर दें और सिर को स्थिर रखें।
फ़िजयोथिरेपी व्यायामों को करते समय यह बात हमेशा ध्यान रखें कि अगर किसी भी समय ऐसा लगे कि दर्द का वेग बढ रहा है तो व्यायाम कदापि न करें। “दर्द नहीं तो व्यायाम करने से क्या लाभ” का फ़न्डा न अपनायें। सरवाईकल व्यायामों को कम से कम दिन मे दो बार अवशय करें ।2-साभार श्री रवि रतलामी :
Noname
एक सपाट बिस्तर या फ़र्श पर बिना तकिये के पीठ के बल लेट जाएँ. फिर अपनी गर्दन को जितना संभव हो सके उतना धीरे धीरे ऊपर उठाते जाएँ. ध्यान रहे, पीठ का हिस्सा न उठे. गहरी से गहरी सांस भीतर खींचें. फिर उतने ही धीरे धीरे गर्दन नीचे करते जाएँ. सांस धीरे धीरे छोड़ें और पूरी ताकत से अंदर फेफड़े की हवा बाहर फेंकें. यह व्यायाम कम से कम एक दर्जन बार, सुबह-शाम करें. इस व्यायाम से आपके गर्दन की मांसपेशियों को ताकत मिलती है तथा इसके परिणाम आपको पंद्रह दिवस के भीतर मिलने लगेंगे. नियमित व्यायाम से गर्दन दर्द से पीछा छुड़ाया जा सकता है.
होम्योपैथी चिकित्सा (Homeopathic Treatment)जहाँ बाकी चिकित्सा पद्धतियाँ विशेष कर एलोपैथी चिकित्सा पद्धति सिर्फ़ दर्दनाशक औषधियों तक ही सीमित रहती हैं, वहीं होम्योपैथी रोग के मूलकारण और उससे उत्पन्न होनी वाली समस्यायों को दूर करने मे सक्षम है। एक होम्योपैथिक चिकित्सक को सरवाईकल रोगों मे न सिर्फ़ औषधि के चयन बल्कि रोग को management करने के तरीको के बारे मे भी अच्छी तरह जानना चाहिये। आप का दृष्टिकोण समय के साथ चले , इसी मे इस पद्दति की सफ़लता निहित होगी।
सबसे पहले लेते हैं सरवाईकल रोग की थेरापियूटिक्स (therapeuctics) सेक्शन की , उसके बाद रिपरटारजेशन (repertorisation) की।
  • थेरापियूटिक्स (therapeuctics)
सरवाईकल रोगों के औषधि चयन करते समय रोग के कारणों पर अपनी नजरें जमायें रखें। विस्तार मे reference के लिये Samuel Lilientheal की
Therapeuctics को देखें।
  • Intervertebreal spaces के कम हो जाने और osteophyte के बन जाने पर –hekla lava, calc fl, phos
  • गर्दन की अकडन दर्द के सथ–actae racemosa, rhus tox, cocculus ind
  • Neurological लक्षणों के साथ, हाथ और ऊँगलियों का सुन्नपन्न–Kalmia,Parrirera brava,
  • दर्द का वेग एक या दोनो हाथों मे जाना—kalmia,nux
  • चक्कर के साथ—conium,cocculus ind
  • न सहन करने योग्य पीडा–gaultheria,stellaria media,colchichum
रिपरटारजेशन (repertorisation) यह हमेशा ध्यान रखें कि किसी रोग की थेरापियूटिक्स (therapeuctics) हमेशा चिकित्सक को सीमित दायरे मे रख देती है। अगर समय का अभाव न हो तो सरवाईकल रोगों मे भी रिपरटारजेशन का साहारा लेने मे कोताही न बरतें।
सरवाईकल रोगों मे रिपरटारजेशन (repertorisation) करने के आसान सुझाव:
  • General symptoms को सबसे पहले वरीयता क्रम मे डालें; तत्पश्चात् particular और common symptoms का नम्बर लगायें। किसी भी रोग मे rare , characteristic और striking लक्षणों को तलाशने की कोशिश करें।
मै इस बात को अच्छी तरह से समझ सकता हूँ कि विशेष कर नये होम्योपैथी चिकित्सकों को लक्षणों को लेने मे और repertorisation चाहे manual या computerised करने मे कई दुशवारियाँ आती हैं । repertorisation करने के तरीके भले ही अलग -2 हों लेकिन सार सब का एक ही है कि सही सिमिलिमम (similimum) को ढूंढना ।
  • computerised repertorisation क्यों आज की आवश्यकता है इसके लिये यहाँ देखें
  • पुराने और जटिल रोगों (chronic diseases) मे case taking लेने का आसान सा तरीका यहाँ उपलब्ध है, समय -2 पर इसको और भी आसान बनाने की कोशिश की गयी है, इसको  यहाँ देखें
  • सही तरीकों से लक्षणों को लेना क्यों होम्योपैथी मे आवशयक है , इसके लिये यह भी देखें
  • नये होम्योपैथिक चिकित्सकों को रुबरिक्स(rubrics) बनाने मे या रडार, क्लासिक 8 या मर्क्यूरिस के साफ़्ट्वेएर मे लक्षणों डालने मे समस्या हो तो आरकुट मे चल रही Revolutionized Homoeopathy से सम्पर्क करें। डा प्रवीन, डा शशिकान्त, मै और अन्य आपकी सहायता के लिये हमेशा तत्पर मिलेगें।
यह लेख निम्न लिखित लिंक से सहेजा गया है :-http://drprabhattandon.wordpress.com/2007/01/16/cervical-spondylosis-and-homeopathy/

Saturday, October 27, 2012

अपामार्ग ,/चिरचिटा के अनुभूत प्रयोग

बारिश के बाद बगीचों में अपने आप उगे इन सुन्दर पौधों पर जब नज़र पड़ी तो मन प्रसन्न हो गया . ये अपामार्ग के पत्ते गणेश पूजा , हरतालिका पूजा , मंगला गौरी पूजा आदि में पात्र पूजा के समय काम आते है .शायद पूजा इन सबके पत्र इसलिए इस्तेमाल होते होंगे ताकि हम इन आयुर्वेदिक रूप से महत्वपूर्ण पेड़ पौधों की पहचान भूले नहीं और ज़रुरत के समय इनका सदुपयोग कर सके .

इसे अघाडा ,लटजीरा या चिरचिटा भी कहा जाता है .

- इसकी दातून करने से दांत १०० वर्ष तक मज़बूत रहते है . इसके पत्ते चबाने से दांत दर्द में राहत मिलती है और गुहा भी धीरे धीरे भर जाती है .

- इसके बीजों का चूर्ण सूंघने से आधा सीसी में लाभ होता है . इससे मस्तिष्क में जमा हुआ कफ निकल जाता है और वहां के कीड़े भी झड जाते है .

- इसके पत्तों को पीसकर लगाने से फोड़े फुंसी और गांठ तक ठीक हो जाती है .

- इसकी जड़ को कमर में धागे से बाँध देने से प्रसव सुख पूर्वक हो जाता है . प्रसव के बाद इसे हटा देना चाहिए .

- ज़हरीले कीड़े काटने पर इसके पत्तों को पीसकर लगा देने से आराम मिलता है .

- गर्भ धारण के लिए इसकी १० ग्राम पत्तियाँ या जड़ को गाय के दूध के साथ ४ दिन सुबह ,दोपहर और शाम में ले . यह प्रयोग अधिकतर तीन बार करे .

- इसकी ५-१० ग्राम जड़ को पानी के साथ घोलकर लेने से पथरी निकल जाती है .

- अपामार्ग क्षार या इसकी जड़ श्वास में बहुत लाभ दायक है .

- इसकी जड़ के रस को तेल में पका ले . यह तेल कान के रोग जैसे बहरापन , पानी आना आदि के लिए लाभकारी है .

- इसकी जड़ का रस आँखों के रोग जैसे फूली , लालिमा , जलन आदि लिए अच्छा होता है .

- इसके बीज चावल की तरह दीखते है , इन्हें तंडुल कहते है . यदि स्वस्थ व्यक्ति इन्हें खा ले तो उसकी भूख -प्यास आदि समाप्त हो जाती है . पर इसकी खीर उनके लिए वरदान है जो भयंकर मोटापे के बाद भी भूख को नियंत्रित नहीं कर पाते .
 
 
 
बारिश के बाद बगीचों में अपने आप उगे इन सुन्दर पौधों पर जब नज़र पड़ी तो मन प्रसन्न हो गया . ये अपामार्ग के पत्ते गणेश पूजा , हरतालिका पूजा , मंगला गौरी पूजा आदि में पात्र पूजा के समय काम आते है .शायद पूजा इन सबके पत्र इसलिए इस्तेमाल होते होंगे ताकि हम इन आयुर्वेदिक रूप से महत्वपूर्ण पेड़ पौधों की पहचान भूले नहीं और ज़रुरत के समय इनका सदुपयोग कर सके .

इसे अघाडा ,लटजीरा या चिरचिटा भी कहा जाता है .

- इसकी दातून करने से दांत १०० वर्ष तक मज़बूत रहते है . इसके पत्ते चबाने से दांत दर्द में राहत मिलती है और गुहा भी धीरे धीरे भर जाती है .

- इसके बीजों का चूर्ण सूंघने से आधा सीसी में लाभ होता है . इससे मस्तिष्क में जमा हुआ कफ निकल जाता है और वहां के कीड़े भी झड जाते है .

- इसके पत्तों को पीसकर लगाने से फोड़े फुंसी और गांठ तक ठीक हो जाती है .

- इसकी जड़ को कमर में धागे से बाँध देने से प्रसव सुख पूर्वक हो जाता है . प्रसव के बाद इसे हटा देना चाहिए .

- ज़हरीले कीड़े काटने पर इसके पत्तों को पीसकर लगा देने से आराम मिलता है .

- गर्भ धारण के लिए इसकी १० ग्राम पत्तियाँ या जड़ को गाय के दूध के साथ ४ दिन सुबह ,दोपहर और शाम में ले . यह प्रयोग अधिकतर तीन बार करे .

- इसकी ५-१० ग्राम जड़ को पानी के साथ घोलकर लेने से पथरी निकल जाती है .

- अपामार्ग क्षार या इसकी जड़ श्वास में बहुत लाभ दायक है .

- इसकी जड़ के रस को तेल में पका ले . यह तेल कान के रोग जैसे बहरापन , पानी आना आदि के लिए लाभकारी है .

- इसकी जड़ का रस आँखों के रोग जैसे फूली , लालिमा , जलन आदि लिए अच्छा होता है .

- इसके बीज चावल की तरह दीखते है , इन्हें तंडुल कहते है . यदि स्वस्थ व्यक्ति इन्हें खा ले तो उसकी भूख -प्यास आदि समाप्त हो जाती है . पर इसकी खीर उनके लिए वरदान है जो भयंकर मोटापे के बाद भी भूख को नियंत्रित नहीं कर पाते .

Friday, October 26, 2012

पीपल के लाभ

पीपल के पेड़ की हिन्दू बहुत मनोयोग से पूजा करता है और इसको देव वृक्ष समझता है| इसको काटना घोर अपराध माना गया है अब तो वैज्ञानिको ने भी इस पेड़ को प्रकृति और आयुर्वेदिक दवाओ के लिए लाभकारी सिद्ध कर दिया है भगवान् श्री कृष्ण कहते है

ऊर्ध्वमूलमध:शाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम् ।
छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित् ।।1।।

अर्थात:-आदि पुरुष परमेश्वर रूप मूल वाले और ब्रह्म रूप मुख्य शाखा वाले जिस संसार रूप पीपल के वृक्ष को अविनाशी कहते हैं; तथा वेद जिसके प
त्ते कहे गये हैं- उस संसार रूप वृक्ष को जो पुरुष मूल सहित तत्त्व से जानता है, वह वेद के तात्पर्य को जानने वाला है ।।1।।

आइये हम भी जाने की पीपल के पेड़ से हमें क्या क्या लाभ मिलता है-

यह 24 घंटे ऑक्सीजन देता है .
- इसके पत्तों से जो दूध निकलता है उसे आँख में लगाने से आँख का दर्द ठीक हो जाता है .भगवत गीता अध्याय 26
- पीपल की ताज़ी डंडी दातून के लिए बहुत अच्छी है .
- पीपल के ताज़े पत्तों का रस नाक में टपकाने से नकसीर में आराम मिलता ...

है .
- हाथ -पाँव फटने पर पीपल के पत्तों का रस या दूध लगाए .
- पीपल की छाल को घिसकर लगाने से फोड़े फुंसी और घाव और जलने से हुए घाव भी ठीक हो जाते है .
- सांप काटने पर अगर चिकित्सक उपलब्ध ना हो तो पीपल के पत्तों का रस 2-2 चम्मच ३-४ बार पिलायें .विष का प्रभाव कम होगा .
- इसके फलों का चूर्ण लेने से बांझपन दूर होता है और पौरुष में वृद्धि होती है .
- पीलिया होने पर इसके ३-४ नए पत्तों के रस का मिश्री मिलाकर शरबत पिलायें .३-५ दिन तक दिन में दो बार दे .
- कुक्कुर खांसी में छाल का 40 मी ली. काढा दिन में तीन बार पिलाने से लाभ होता है .
- इसके पके फलों के चूर्ण का शहद के साथ सेवन करने से हकलाहट दूर होती है और वाणी में सुधार होता है .
- इसके फलों का चूर्ण और छाल सम भाग में लेने से दमा में लाभ होता है .
- इसके फल और पत्तों का रस मृदु विरेचक है और बद्धकोष्ठता को दूर करता है .
- यह रक्त पित्त नाशक , रक्त शोधक , सुजन मिटाने वाला ,शीतल और रंग निखारने वाला है .
  
 
 
 
पीपल के पेड़ की हिन्दू बहुत मनोयोग से पूजा करता है और इसको देव वृक्ष समझता है| इसको काटना घोर अपराध माना गया है अब तो वैज्ञानिको ने भी इस पेड़ को प्रकृति और आयुर्वेदिक दवाओ के लिए लाभकारी सिद्ध कर दिया है भगवान् श्री कृष्ण कहते है

ऊर्ध्वमूलमध:शाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम् ।
छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित् ।।1।।

अर्थात:-आदि पुरुष परमेश्वर रूप मूल वाले और ब्रह्म रूप मुख्य शाखा वाले जिस संसार रूप पीपल के वृक्ष को अविनाशी कहते हैं; तथा वेद जिसके प
त्ते कहे गये हैं- उस संसार रूप वृक्ष को जो पुरुष मूल सहित तत्त्व से जानता है, वह वेद के तात्पर्य को जानने वाला है ।।1।।

आइये हम भी जाने की पीपल के पेड़ से हमें क्या क्या लाभ मिलता है-

यह 24 घंटे ऑक्सीजन देता है .
- इसके पत्तों से जो दूध निकलता है उसे आँख में लगाने से आँख का दर्द ठीक हो जाता है .भगवत गीता अध्याय 26
- पीपल की ताज़ी डंडी दातून के लिए बहुत अच्छी है .
- पीपल के ताज़े पत्तों का रस नाक में टपकाने से नकसीर में आराम मिलता ...

है .
- हाथ -पाँव फटने पर पीपल के पत्तों का रस या दूध लगाए .
- पीपल की छाल को घिसकर लगाने से फोड़े फुंसी और घाव और जलने से हुए घाव भी ठीक हो जाते है .
- सांप काटने पर अगर चिकित्सक उपलब्ध ना हो तो पीपल के पत्तों का रस 2-2 चम्मच ३-४ बार पिलायें .विष का प्रभाव कम होगा .
- इसके फलों का चूर्ण लेने से बांझपन दूर होता है और पौरुष में वृद्धि होती है .
- पीलिया होने पर इसके ३-४ नए पत्तों के रस का मिश्री मिलाकर शरबत पिलायें .३-५ दिन तक दिन में दो बार दे .
- कुक्कुर खांसी में छाल का 40 मी ली. काढा दिन में तीन बार पिलाने से लाभ होता है .
- इसके पके फलों के चूर्ण का शहद के साथ सेवन करने से हकलाहट दूर होती है और वाणी में सुधार होता है .
- इसके फलों का चूर्ण और छाल सम भाग में लेने से दमा में लाभ होता है .
- इसके फल और पत्तों का रस मृदु विरेचक है और बद्धकोष्ठता को दूर करता है .
- यह रक्त पित्त नाशक , रक्त शोधक , सुजन मिटाने वाला ,शीतल और रंग निखारने वाला है .

Sunday, October 21, 2012

The Great scientist -Nagarjuna



प्राचीन भारत में नागार्जुन नाम के महान रसायन शास्त्री हुए हैं। इनकी जन्म तिथि एवं जन्मस्थान के विषय में अलग-अलग मत हैं। एक मत के अनुसार इनका जन्म द्वितीय शताब्दी में हुआ था। नागार्जुन ने रसायन शास्त्र और धातु विज्ञान पर बहुत शोध कार्य किया। रसायन शास्त्र पर इन्होंने कई पुस्तकों की रचना की जिनमें 'रस रत्नाकर' और 'रसेन्द्र मंगल' बहुत प्रसिद्ध हैं। इन्होंने अपनी चिकित्सकीय ‍सूझबू

झ से अनेक असाध्य रोगों की औषधियाँ तैयार की। चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में इनकी प्रसिद्ध पुस्तकें 'कक्षपुटतंत्र', 'आरोग्य मंजरी', 'योग सार' और 'योगाष्टक' हैं।

नागार्जुन द्वारा लिखी गई पुस्तक ‘रस रत्नाकार‘ दो रूपों में उपलब्ध है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि इसी नाम के एक बौद्ध रसायनज्ञ ने इस पुस्तक का पुनरावलोकन किया। यह पुस्तक अपने में रसायन का तत्कालीन अथाह ज्ञान समेटे हुए हैं। नागार्जुन के रस रत्नाकर में अयस्क सिनाबार से पारद को प्राप्त करने की आसवन (डिस्टीलेशन) विधि वर्णित है। नागार्जुन के रस रत्नाकर में रजत के धातुकर्म का वर्णन तो विस्मयकारी है। रस रत्नाकर में वनस्पतियों से कई प्रकार के अम्ल और क्षार की प्राप्ति की भी विधियां वर्णित हैं।

प्रयोगशाला में नागार्जुन ने पारे पर बहुत प्रयोग किए। विस्तार से उन्होंने पारे को शुद्ध करना और उसके औषधीय प्रयोग की विधियां बताई हैं। अपने ग्रंथों में नागार्जुन ने विभिन्न धातुओं का मिश्रण तैयार करने, पारा तथा अन्य धातुओं का शोधन करने, महारसों का शोधन तथा विभिन्न धातुओं को स्वर्ण या रजत में परिवर्तित करने की विधि दी है। पारे के प्रयोग से न केवल धातु परिवर्तन किया जाता था अपितु शरीर को निरोगी बनाने और दीर्घायुष्य के लिए उसका प्रयोग होता था। भारत में पारद आश्रित रसविद्या अपने पूर्ण विकसित रूप में स्त्री-पुरुष प्रतीकवाद से जुड़ी है। पारे को शिव तत्व तथा गन्धक को पार्वती तत्व माना गया और इन दोनों के हिंगुल के साथ जुड़ने पर जो द्रव्य उत्पन्न हुआ, उसे रससिन्दूर कहा गया, जो आयुष्य-वर्धक सार के रूप में माना गया। ग्रंथों से यह भी ज्ञात होता है कि रस-शास्त्री धातुओं और खनिजों के हानिकारक गुणों को दूर कर, उनका आन्तरिक उपयोग करने हेतु तथा उन्हें पूर्णत: योग्य बनाने हेतु विविध शुद्धिकरण की प्रक्रियाएं करते थे। उसमें पारे को अठारह संस्कार यानी शुद्धिकरण प्रक्रिया से गुजरना पड़ता था। इन प्रक्रियाओं में औषधि गुणयुक्त वनस्पतियों के रस और काषाय के साथ पारे का घर्षण करना और गन्धक, अभ्रक तथा कुछ क्षार पदार्थों के साथ पारे का संयोजन करना प्रमुख है।

नागार्जुन से संबधित एक प्रेरणादायक घटना इस प्रकार है। नागार्जुन जब वृद्ध हो चले, तो उन्होंने एक बार राजा से कहा - 'राजन! प्रयोगशाला का काम बहुत बढ़ चला है। इसलिए मुझे अपने काम के लिए एक सहायक की आवश्यकता है।' राजा ने ध्यान से नागार्जुन की बात सुनी और कुछ सोचकर कहा- 'कल मैं आपके पास दो कुशल और योग्य नवयुवकों को भेजूँगा। आप उनमें से किसी एक का चयन अपने सहायक के रूप में कर लीजिएगा।' अगले दिन सवेरे दो नवयुवक नागार्जुन के पास पहुँचे। नागार्जुन ने उन्हें अपने पास बिठाया और उनसे उनकी योग्यताओं के बारे में पूछा। दोनों ही नवयुवक समान योग्यताएँ रखते थे। अब नागार्जुन के सामने यह समस्या उठ खड़ी हुई कि वह उन दोनों में से किसे अपना सहायक चुनें? बहुत सोच-विचार के बाद नागार्जुन ने उन दोनों को एक-एक पदार्थ दिया और उनसे कहा - 'यह क्या है, इस बारे में मैं तुम्हें कुछ नहीं बताऊँगा। तुम स्वयं इसकी पहचान करो और फिर इसका कोई एक रसायन अपनी मर्जी के अनुसार बनाकर लाओ। इसके बाद ही मैं यह निर्णय करूँगा कि तुम दोनों में से किसे अपना सहायक बनाऊँ?' दोनों युवक पदार्थ लेकर उठ खड़े हुए। तब नागार्जुन ने कहा - 'तुम लोगों की मैं परसों प्रतीक्षा करूँगा।' वह दोनों युवक जैसे ही जाने को हुए। नागार्जुन ने फिर कहा, 'और सुनो, घर जाने के लिए तुम्हें पूरा राजमार्ग तय करना होगा।' दोनों नवयुवक उनकी अजीब शर्त सुनकर हैरत में पड़ गए और सोचने लगे कि आचार्य उन्हें राजमार्ग पर से होकर ही जाने को क्यों कह रहे हैं? लेकिन आचार्य से उन्होंने इस बारे में कोई सवाल नहीं किया और वहाँ से चल दिए। तीसरे दिन सायं दोनों नवयुवक यथासमय नागार्जुन के पास पहुँचे। उनमें से एक नवयुवक काफी खुश दिखाई दे रहा था और दूसरा खामोश। नागार्जुन ने पहले युवक से पूछा 'क्यों भाई! वह रसायन तैयार कर लिया?' युवक ने तत्परता से प्रत्युत्तर दिया - 'जी हाँ! मैंने उस पदार्थ की पहचान कर रसायन तैयार कर लिया है।' तब नागार्जुन ने तैयार रसायन की परख की और उसके संबंध में युवक से कुछ प्रश्न किए। युवक ने उनके सही-सही उत्तर दे दिए। तब नागार्जुन ने दूसरे युवक से पूछा - 'तुम अपना रसायन क्यों नहीं लाए?' युवक ने उत्तर दिया - 'आचार्य जी! मुझे बहुत दुख है कि मैं रसायन बनाकर नहीं ला सका। हालाँकि मैंने आपके दिए हुए पदार्थ को पहचान लिया था।' 'लेकिन क्यों?' नागार्जुन ने पूछा। युवक ने उत्तर दिया - 'जी! मैं आपके आदेश के अनुसार राजमार्ग से होकर गुजर रहा था कि अचानक मैंने देखा कि एक पेड़ के नीचे एक वृद्ध और बीमार व्यक्ति पड़ा दर्द से कराह रहा है और पानी माँग रहा है। मुझसे उस वृद्ध की यह दशा देखी न गई और मैं उसे उठाकर अपने घर ले गया। मेरा सारा समय उसकी चिकित्सा और सेवा सुश्रुषा में लग गया। अब वह स्वास्थ्य लाभ कर रहा है। इसीलिए मैं आपके द्वारा दिए गए पदार्थ का रसायन तैयार न कर पाया। कृपया मुझे क्षमा करें।' इस पर नागार्जुन मुस्करा उठे और उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा - 'मैं तुम्हें अपना सहायक नियुक्त करता हूँ। अगले दिन जब नागार्जुन राजा से मिले तो राजा ने आश्चर्य से पूछा - 'आचार्य जी! मैं अब तक नहीं समझ पा रहा हूँ कि आपने रसायन बनाकर लाने वाले युवक के स्थान पर उस युवक को क्यों अपना सहायक बनाना स्वीकार किया, जो रसायन बनाकर नहीं ला सका?' तब नागार्जुन ने बताया - 'राजन! मैंने उचित ही किया है। जिस नवयुवक ने रसायन नहीं बनाया। उसने मानवता की सेवा की। दोनों नवयुवक एक ही रास्ते से गुजरे, लेकिन एक उस वृद्ध बीमार की सेवा के‍ लिए रुक गया और दूसरा उसे अनदेखा कर चला गया। रसायन तो बहुत लोग तैयार कर सकते हैं किंतु अपने स्वार्थ को भूलकर मानवता की सेवा करने वाले सेवाभावी बहुत कम हुआ करते हैं। मेरे जीवन का ध्येय ही मानवता की सेवा करना है। और मुझे ऐसे ही व्यक्ति की आवश्यकता थी, जो सच्चे मन से मानव सेवा कर सके। राजा नागार्जुन की यह अनुभव भरी व समझपूर्ण बात सुनकर उनके आगे श्रद्धा से नतमस्तक हो गया।

नागार्जुन नाम के ही एक बौद्ध रसायनज्ञ और दर्शनशास्त्री हुए हैं। इनका जन्म दक्षिण भारत के नागार्जुनकोंडा नमक स्थान पर हुआ। आन्ध्र प्रदेश की राजधानी हैदराबाद से लगभग 150 क़िमी दूर कृष्णा नदी पर नागार्जुन सागर बाँध बनाया गया है। इस बाँध से निर्मित नागार्जुन सागर झील दुनिया की तीसरी सब से बड़ी मानव निर्मित झील है। नागार्जुन बाँध बनाते समय हुई खुदाई में नागार्जुनकोंडा में तीसरी शताब्दी के बौद्ध। यहाँ कभी बौद्ध विहार और एक विश्व विश्वविद्यालय हुआ करता था। नागार्जुन सागर परियोजना के द्वारा नागार्जुनकोंडा में मिले अवशेषों को झील के मध्य में स्थित द्वीप पर पुनर्स्थापित कर दिया गया है। झील के मध्य में स्थित नागार्जुन कोंडा और यहाँ पर बनाया गया संग्राहलय एक दर्शनीय स्थल है। नागार्जुन सागर से लगभग 200 क़िमी दूर श्रीसैल पर्वत पर बसा श्रीसैलम तीर्थ स्थल है। भारत में बारह ज्योतिर्लिंग हैं जिनमे से एक श्रीसैलम में है। शिवजी के स्वरूप को यहाँ श्री मल्लिकार्जुन स्वामी कहा जाता है। साथ ही यहां शक्तिपीठ भी है जहाँ देवी भ्रमरंभा की उपासना की जाती है। यह भारत का एक मात्र तीर्थ स्थल है जहाँ ज्योतिर्लिंग और शक्तिपीठ एक ही स्थान पर है। पास में कृष्णा नदी है जो जंगलों और पहाडों के बीच से होकर निकलती है। नागार्जुनकोंडा और श्रीसैलम को कृष्णा नदी के साथ-साथ नागार्जुन भी एक सूत्र में पिरोते हैं। नागार्जुनकोंडा में रसायन शास्त्री नागार्जुन ने पारे और गंधक पर बारह वर्षों तक शोध कार्य किया। भारतीय दर्शन में पारे को शिव तत्व तथा गन्धक को पार्वती तत्व माना गया। श्रीसैलम में आज भी इन दो तत्वों की पूजा के लिए देश के कोने-कोने श्रृद्धालू आते हैं।

Sunday, October 14, 2012

सैन्धव नमक


= नमक हमारे शरीर के लिये बहुत जरूरी है। इसके बावजूद हम सब घटिया किस्म का नमक खाते है। यह शायद आश्चर्यजनक लगे , पर यह एक हकीकत है ।

= नमक विशेषज्ञ एन के भारद्वाज का कहना है कि भारत मे अधिकांश लोग समुद्र से बना नमक खाते है । श्रेष्ठ प्रकार का नमक सेंधा नमक है, जो पहाडी नमक है ।

= प्रख्यात वैद्य मुकेश पानेरी कहते है कि आयुर्वेद की बहुत सी दवाईयों मे सेंधा नमक का उपयोग होता है।आम तौर से उपयोग मे लाये जाने वाले समुद्री नमक से उच्च रक्तचाप का भय रहता है । इसके विपरीत सेंधा नमक के उपयोग से रक्तचाप पर नियन्त्रण रहता है । इसकी शुध्धता के कारण ही इसका उपयोग व्रत के भोजन मे होता है ।

= सेंधा नमक की सबसे बडी समस्या है कि भारत मे यह काफ़ी कम मात्रा मे होता है , और वह भी शुद्ध नही होता है। भारत मे ८० प्रतिशत नमक समुद्री है, १५ प्रतिशत जमीनी और केवल पांच प्रतिशत पहाडी यानि कि सेंधा नमक । सबसे अधिक सेंधा नमक पाकिस्तान की मुल्तान की पहडियों मे है।

= ऐतिहासिक रूप से पूरे उत्तर भारतीय उपमहाद्वीप में खनिज पत्थर के नमक को 'सेंधा नमक' या 'सैन्धव नमक' कहा जाता है जिसका मतलब है 'सिंध या सिन्धु के इलाक़े से आया हुआ'। अक्सर यह नमक इसी खान से आया करता था। सेंधे नमक को 'लाहौरी नमक' भी कहा जाता है क्योंकि यह व्यापारिक रूप से अक्सर लाहौर से होता हुआ पूरे उत्तर भारत में बेचा जाता था।

= समुद्री और सेंधा नमक के दाम मे इतना अधिक अंतर है जिसके कारण लोग समुद्री नमक खरीद्ते हैं । समुद्री नमक जहां नौ रु किलो है तो सेंधा नमक का दाम रु ४० प्रति किलो है । सेंधा नमक समुद्री नमक से कम नमकीन होता है । साफ़ है कि इसका अधिक उपयोग करना पडता है ।और इसीलिये लाख उपयोगी होने के बावजूद लोग इसकी जगह समुद्री नमक से ही चला लेते है । पर अगर उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियाँ हुई तो इसके इलाज में जो हज़ारो रुपये खर्च होंगे ; इसकी तुलना में दाम का ये फर्क कुछ भी नहीं ।

= सिर्फ आयोडीन के चक्कर में ज्यादा नमक खाना समझदारी नहीं है, क्योंकि आयोडीन हमें आलू, अरवी के साथ-साथ हरी सब्जियों से भी मिल जाता है।

= यह सफ़ेद और लाल रंग मे पाया जाता है । सफ़ेद रंग वाला नमक उत्तम होता है।

= यह ह्रदय के लिये उत्तम, दीपन और पाचन मे मददरूप, त्रिदोष शामक, शीतवीर्य अर्थात ठंडी तासीर वाला, पचने मे हल्का है । इससे पाचक रस बढ़्ते हैं।

= रक्त विकार आदि के रोग जिसमे नमक खाने को मना हो उसमे भी इसका उपयोग किया जा सकता है।

= यह पित्त नाशक और आंखों के लिये हितकारी है ।

= दस्त, कृमिजन्य रोगो और रह्युमेटिज्म मे काफ़ी उपयोगी होता है ।

सेंधा नमक के विशिष्ठ योग

= हिंगाष्ठक चूर्ण, लवण भास्कर और शंखवटी इसके कुछ विशिष्ठ योग हैं ।

काला नमक

= यह भी ह्रदय के लिये उत्तम, दीपन और पाचन मे मददरूप, वायु शामक है । पेट फ़ूलने की समस्या मे मददरुप है। इसके सेवन से डकार शुद्ध आती है और छोटे बच्चो की कब्ज की समस्या मे इसका उपयोग होता है ।

= काला नमक बनाने के लिये सेंधा नमक और साजीखार सम प्रमाण मे ले। साजीखार का उपयोग पापड बनाने में होता है और यह पंसारी की दुकान पर आसानी से मिलता है। इस मिश्रण को पानी मे घोलें । अब इसे धीमी आंच पर गर्म करे और पूरा पानी जला दें । अंत मे जो बचेगा वह काला नमक है ।

= नमक आवश्यक है पर उसे कम से कम मात्रा में खाना चाहिए ।

Remedial qualities of Chuna

 
 चूना जो आप पान में खाते है वो सत्तर बीमारियाँ ठीक करता है
 

चुना जो आप पान में खाते है वो सत्तर बीमारी ठीक कर देते है ।
जैसे किसीको पीलिया जो जाये माने जोंडिस उसकी सबसे अछि दावा है चुना ; गेहूँ के दाने के बराबर चुना गन्ने के रस में मिलाकर पिलाने से बहुत जल्दी पीलिया ठीक कर देता है । और येही चुना नपुंसकता की सबसे अछि दावा है - अगर किसीके शुक्राणु नही बनता उसको अगर गन्ने के रस के साथ चुना पिलाया जाये तो साल देड साल में भरपूर शुक्राणु बन्ने लगेंगे; और जिन माताओं के शरीर में अन्डे नही बनते उनकी बहुत अछि दावा है ये चुना । बिद्यार्थीओ के लिए चुना बहुत अछि है जो लम्बाई बढाती है - गेहूँ के दाने के बराबर चुना रोज दही में मिलाके खाना चाहिए, दही नही है तो दाल में मिलाके खाओ, दाल नही है तो पानी में मिलाके पियो - इससे लम्बाई बढने के साथ साथ स्मरण शक्ति भी बहुत अच्छा होता है । जिन बछोकी बुद्धि कम काम करती है मतिमंद बच्चे उनकी सबसे अछि दावा है चुना, जो बच्चे बुद्धि से कम है, दिमाग देर में काम करते है, देर में सोचते है हर चीज उनकी स्लो है उन सभी बच्चे को चुना खिलाने से अछे हो जायेंगे ।
बहनों को अपने मासिक धर्म के समय अगर कुछ भी तकलीफ होती हो तो उसका सबसे अछि दावा है चुना । और हमारे घर में जो माताएं है जिनकी उम्र पचास वर्ष हो गयी और उनका मासिक धर्म बंध हुआ उनकी सबसे अछि दावा है चुना; गेहूँ के दाने के बराबर चुना हरदिन खाना दाल में, लस्सी में, नही तो पानी में घोल के पीना ।

जब कोई माँ गर्भावस्था में है तो चुना रोज खाना चाहिए किउंकि गर्भवती माँ को सबसे जादा काल्सियम की जरुरत होती है और चुना कैल्सियम का सब्से बड़ा भंडार है । गर्भवती माँ को चुना खिलाना चाहिए अनार के रस में - अनार का रस एक कप और चुना गेहूँ के दाने के बराबर ये मिलाके रोज पिलाइए नौ महीने तक लगातार दीजिये तो चार फाईदे होंगे - पहला फाईदा होगा के माँ को बच्चे के जनम के समय कोई तकलीफ नही होगी और नोर्मल डेलीभरी होगा, दूसरा बछा जो पैदा होगा वो बहुत हस्टपुष्ट और तंदरुस्त होगा , तीसरा फ़ायदा वो बछा जिन्दगी में जल्दी बीमार नही पड़ता जिसकी माँ ने चुना खाया , और चौथा सबसे बड़ा लाभ है वो बछा बहुत होसियार होता है बहुत Intelligent और Brilliant होता है उसका IQ बहुत अच्छा होता है ।

चुना घुटने का दर्द ठीक करता है , कमर का दर्द ठीक करता है , कंधे का दर्द ठीक करता है, एक खतरनाक बीमारी है Spondylitis वो चुने से ठीक होता है । कई बार हमारे रीड़ की हड्डी में जो मनके होते है उसमे दुरी बड़ जाती है Gap आ जाता है - ये चुना ही ठीक करता है उसको; रीड़ की हड्डी की सब बीमारिया चुने से ठीक होता है । अगर आपकी हड्डी टूट जाये तो टूटी हुई हड्डी को जोड़ने की ताकत सबसे जादा चुने में है । चुना खाइए सुबह को खाली पेट ।

अगर मुह में ठंडा गरम पानी लगता है तो चुना खाओ बिलकुल ठीक हो जाता है , मुह में अगर छाले हो गए है तो चुने का पानी पियो तुरन्त ठीक हो जाता है । शारीर में जब खून कम हो जाये तो चुना जरुर लेना चाहिए , अनीमिया है खून की कमी है उसकी सबसे अछि दावा है ये चुना , चुना पीते रहो गन्ने के रस में , या संतरे के रस में नही तो सबसे अच्छा है अनार के रस में - अनार के रस में चुना पिए खून बहुत बढता है , बहुत जल्दी खून बनता है - एक कप अनार का रस गेहूँ के दाने के बराबर चुना सुबह खाली पेट ।

भारत के जो लोग चुने से पान खाते है, बहुत होसियार लोग है पर तम्बाकू नही खाना, तम्बाकू ज़हर है और चुना अमृत है .. तो चुना खाइए तम्बाकू मत खाइए और पान खाइए चुने का उसमे कत्था मत लगाइए, कत्था कन्सर करता है, पान में सुपारी मत डालिए सोंट डालिए उसमे , इलाइची डालिए , लोंग डालिए. केशर डालिए ; ये सब डालिए पान में चुना लगाके पर तम्बाकू नही , सुपारी नही और कत्था नही ।
अगर आपके घुटने में घिसाव आ गया और डॉक्टर कहे के घुटना बदल दो तो भी जरुरत नही चुना खाते रहिये और हाड़सिंगार के पत्ते का काड़ा खाइए घुटने बहुत अछे काम करेंगे । राजीव भाई कहते है चुना खाइए पर चुना लगाइए मत किसको भी ..ये चुना लगाने के लिए नही है खाने के लिए है ; आजकल हमारे देश में चुना लगाने वाले बहुत है पर ये भगवान ने खाने के लिए दिया है l

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जैसा कि आप सभी जानते हैं कि.... ""वेद हिन्दू सनातन धर्म का आधार स्तम्भ"" है...!

परन्तु दुर्भाग्य से.... आधुनिक एवं कलुषित शिक्षा प्रणाली के कारण... आज अत्यधिक पढ़े लिखे लोग भी हमारे अपने धार्मिक एवं परम पवित्र वेद के बारे में बहुत ही कम जानते हैं...!

वेद..... 'विद' शब्द से बना है.... जिसका अर्थ होता है...... ज्ञान या जानना... अथवा , ज्ञाता या जानने वाला..!

सिर्फ जानने वाला... और, जानकर जाना-परखा ज्ञान.... अनुभूत सत्य.... जाँचा-परखा मार्ग....ही वेद है..!

और, हमारे इसी वेद में संकलित है...... 'ब्रह्म वाक्य'।
आपको यह जानकर सुखद आश्चर्य होगा कि....वेद..... मानव सभ्यता के सबसे पुराने लिखित दस्तावेज हैं.......।

इनमे से ....वेदों की 28 हजार पांडुलिपियाँ भारत में पुणे के 'भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट' में रखी हुई हैं......जिनमे ऋग्वेद की 30 पांडुलिपियाँ बहुत ही महत्वपूर्ण हैं...... जिन्हें यूनेस्को ने विरासत सूची में शामिल किया है।

ज्ञातव्य है कि....यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ई.पू. की 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है.... और, यूनेस्को की 158 सूची में भारत की महत्वपूर्ण पांडुलिपियों की सूची 38 है।

वेद को 'श्रुति' भी कहा जाता है..... और ... 'श्रुति' शब्द 'श्रु' धातु से शब्द बना है......... 'श्रु' यानी सुनना।

कहते हैं कि...... इसके मन्त्रों को ईश्वर (ब्रह्म) ने प्राचीन तपस्वियों को अप्रत्यक्ष रूप से सुनाया था..... जब वे गहरी तपस्या में लीन थे।

सर्वप्रथम ईश्वर ने चार ऋषियों को इसका ज्ञान दिया:- अग्नि, वायु, अंगिरा और आदित्य।

वेद ......वैदिककाल की वाचिक परम्परा की अनुपम कृति हैं...... जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी पिछले छह-सात हजार ईस्वी पूर्व से चली आ रही है।

विद्वानों ने...... संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद इन चारों के संयोग को समग्र वेद कहा है..... और, ये चारों भाग सम्मिलित रूप से श्रुति कहे जाते हैं।

बाकी ग्रन्थ स्मृति के अंतर्गत आते हैं।

संहिता इसका मन्त्र भाग है.... और, वेद के मन्त्रों में सुंदरता भरी पड़ी है।

वैदिक ऋषि जब स्वर के साथ वेद मंत्रों का पाठ करते हैं, तो चित्त प्रसन्न हो उठता है.... और, जो भी सस्वर वेदपाठ सुनता है... वो मुग्ध हो उठता है।

ब्राह्मण : ब्राह्मण ग्रंथों में मुख्य रूप से यज्ञों की चर्चा है... और, वेदों के मंत्रों की व्याख्या है.... तथा, यज्ञों के विधान और विज्ञान का विस्तार से वर्णन है।

मुख्य ब्राह्मण 3 हैं : (1) ऐतरेय, ( 2) तैत्तिरीय और (3) शतपथ।

आरण्यक : वन को संस्कृत में कहते हैं 'अरण्य'.... इसीलिए, अरण्य में उत्पन्न हुए ग्रंथों का नाम पड़ गया 'आरण्यक'।

मुख्य आरण्यक पाँच हैं :
(1) ऐतरेय, (2) शांखायन, (3) बृहदारण्यक, (4) तैत्तिरीय और (5) तवलकार।

उपनिषद : उपनिषद को वेद का शीर्ष भाग कहा गया है और यही वेदों का अंतिम सर्वश्रेष्ठ भाग होने के कारण "वेदांत" कहलाए।

उपनिषद में ईश्वर, सृष्टि और आत्मा के संबंध में गहन दार्शनिक और वैज्ञानिक वर्णन मिलता है..।

उपनिषदों की संख्या 1180 मानी गई है, लेकिन वर्तमान में 108 उपनिषद ही उपलब्ध हैं।

जिनमे से मुख्य उपनिषद हैं- ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुंडक, मांडूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छांदोग्य, बृहदारण्यक और श्वेताश्वर।

असंख्य वेद-शाखाएँ, ब्राह्मण-ग्रन्थ, आरण्यक और उपनिषद विलुप्त हो चुके हैं.... और, वर्तमान में ऋग्वेद के दस, कृष्ण यजुर्वेद के बत्तीस, सामवेद के सोलह, अथर्ववेद के इकतीस उपनिषद उपलब्ध माने गए हैं।

वैदिक काल :
प्रोफेसर विंटरनिट्ज मानते हैं कि वैदिक साहित्य का रचनाकाल 2000-2500 ईसा पूर्व हुआ था।

दरअसल... वेदों की रचना किसी एक काल में नहीं हुई.... अर्थात, यह धीरे-धीरे रचे गए और अंतत: माना यह जाता है कि पहले वेद को तीन भागों में संकलित किया गया- ऋग्‍वेद, यजुर्वेद व सामवेद जि‍से वेदत्रयी भी कहा जाता था।

ऐसी मान्यता है कि.... वेद का वि‍भाजन भगवान् राम के जन्‍म के पूर्व पुरुरवा ऋषि के समय में हुआ था... और, बाद में अथर्ववेद का संकलन ऋषि‍ अथर्वा द्वारा कि‍या गया।

दूसरी ओर कुछ लोगों का यह भी मानना है कि...... भगवान कृष्ण के समय द्वापरयुग की समाप्ति के बाद महर्षि वेद व्यास ने वेद को चार प्रभागों संपादित करके व्यवस्थित किया।
इन चारों प्रभागों की शिक्षा चार शिष्यों पैल, वैशम्पायन, जैमिनी और सुमन्तु को दी... और, उस क्रम में ऋग्वेद- पैल को, यजुर्वेद- वैशम्पायन को, सामवेद- जैमिनि को तथा अथर्ववेद- सुमन्तु को सौंपा गया।

अगर इस गणना को ही मान लिया जाये तो भी.... लिखित रूप में आज से 6508 वर्ष पूर्व पुराने हैं... वेद।

और.....इस तथ्य को भी नाकारा नहीं जा सकता है कि .....कृष्ण के आज से 5112 वर्ष पूर्व होने के पुख्ता प्रमाण ढूँढ लिए गए हैं।

वेद के कुल चार विभाग हैं:

ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद।

१. ऋग-स्थिति,
२. यजु-रूपांतरण,
३. साम-गति‍शील और
४. अथर्व-जड़।

ऋक को धर्म, यजुः को मोक्ष, साम को काम, अथर्व को अर्थ भी कहा जाता है।

इन्ही चारों के आधार पर धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र और मोक्षशास्त्र की रचना हुई।

ऋग्वेद : ऋक अर्थात् स्थिति और ज्ञान। इसमें 10 मंडल हैं और 1,028 ऋचाएँ। ऋग्वेद की ऋचाओं में देवताओं की प्रार्थना, स्तुतियाँ और देवलोक में उनकी स्थिति का वर्णन है। इसमें 5 शाखाएँ हैं - शाकल्प, वास्कल, अश्वलायन, शांखायन, मंडूकायन।

यजुर्वेद : यजुर्वेद का अर्थ : यत् + जु = यजु। यत् का अर्थ होता है गतिशील तथा जु का अर्थ होता है आकाश। इसके अलावा कर्म। श्रेष्ठतम कर्म की प्रेरणा। यजुर्वेद में 1975 मन्त्र और 40 अध्याय हैं। इस वेद में अधिकतर यज्ञ के मन्त्र हैं। यज्ञ के अलावा तत्वज्ञान का वर्णन है। यजुर्वेद की दो शाखाएँ हैं कृष्ण और शुक्ल।

सामवेद : साम अर्थात रूपांतरण और संगीत। सौम्यता और उपासना। इसमें 1875 (1824) मन्त्र हैं। ऋग्वेद की ही अधिकतर ऋचाएँ हैं। इस संहिता के सभी मन्त्र संगीतमय हैं, गेय हैं। इसमें मुख्य 3 शाखाएँ हैं, 75 ऋचाएँ हैं और विशेषकर संगीतशास्त्र का समावेश किया गया है।

अथर्ववेद : थर्व का अर्थ है कंपन और अथर्व का अर्थ अकंपन। ज्ञान से श्रेष्ठ कम करते हुए जो परमात्मा की उपासना में लीन रहता है वही अकंप बुद्धि को प्राप्त होकर मोक्ष धारण करता है। अथर्ववेद में 5987 मन्त्र और 20 कांड हैं। इसमें भी ऋग्वेद की बहुत-सी ऋचाएँ हैं। इसमें रहस्यमय विद्या का वर्णन है।

उक्त सभी में परमात्मा, प्रकृति और आत्मा का विषद वर्णन और स्तुति गान किया गया है। इसके अलावा वेदों में अपने काल के महापुरुषों की महिमा का गुणगान व उक्त काल की सामाजिक, राजनीतिक और भौगोलिक परिस्थिति का वर्णन भी मिलता है।

छह वेदांग : (वेदों के छह अंग)- (1) शिक्षा, (2) छन्द, (3) व्याकरण, (4) निरुक्त, (5) ज्योतिष और (6) कल्प।

छह उपांग : (1) प्रतिपदसूत्र, (2) अनुपद, (3) छन्दोभाषा (प्रातिशाख्य), (4) धर्मशास्त्र, (5) न्याय तथा (6) वैशेषिक।

ये 6 उपांग ग्रन्थ उपलब्ध हैं। इसे ही षड्दर्शन कहते हैं, जो इस तरह है:- सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा और वेदांत।

वेदों के उपवेद : ऋग्वेद का आयुर्वेद, यजुर्वेद का धनुर्वेद, सामवेद का गंधर्ववेद और अथर्ववेद का स्थापत्यवेद ये क्रमशः चारों वेदों के उपवेद बतलाए गए हैं।

आधुनिक विभाजन : आधुनिक विचारधारा के अनुसार चारों वेदों का विभाजन कुछ इस प्रकार किया गया-

(1) याज्ञिक, (2) प्रायोगिक और (3) साहित्यिक।

वेदों का सार है...... उपनिषदें और उपनिषदों का सार...... 'गीता' को माना है।

इस क्रम से वेद, उपनिषद और गीता ही धर्मग्रंथ हैं, दूसरा अन्य कोई नहीं।

स्मृतियों में वेद वाक्यों को विस्तृत समझाया गया है।

जबकि....वाल्मिकी रामायण और महाभारत को इतिहास तथा पुराणों को पुरातन इतिहास का ग्रंथ माना है।

विद्वानों ने भी वेद, उपनिषद और गीता के पाठ को ही उचित बताया है।

ऋषि और मुनियों को दृष्टा कहा गया है..... और, वेदों को ईश्वर वाक्य।

वेद ऋषियों के मन या विचार की उपज नहीं है.... और, ऋषियों ने वह लिखा या कहा जैसा कि... उन्होंने पूर्णजाग्रत अवस्था में देखा... सुना और परखा।

मनुस्मृति में श्लोक (II.6) के माध्यम से कहा गया है कि वेद ही सर्वोच्च और प्रथम प्राधिकृत है... और, वेद किसी भी प्रकार के ऊँच-नीच, जात-पात, महिला-पुरुष आदि के भेद को नहीं मानते।

ऋग्वेद की ऋचाओं में लगभग 414 ऋषियों के नाम मिलते हैं..... जिनमें से लगभग 30 नाम महिला ऋषियों के हैं।

जन्म के आधार पर जाति का विरोध ऋग्वेद के पुरुष-सुक्त (X.90.12), व श्रीमद्‍भगवत गीता के श्लोक (IV.13), (XVIII.41) में मिलता है।

श्लोक : श्रुतिस्मृतिपुराणानां विरोधो यत्र दृश्यते।
तत्र श्रौतं प्रमाणन्तु तयोद्वैधे स्मृति‌र्त्वरा॥
अर्थात : जहाँ कहीं भी वेदों और दूसरे ग्रंथों में विरोध दिखता हो, वहाँ वेद की बात की मान्य होगी।-वेद व्यास

प्रकाश से अधिक गतिशील तत्व अभी खोजा नहीं गया है..... और, न ही मन की गति को मापा गया है।

परन्तु.... हमारे ऋषि-मुनियों ने..... मन से भी अधिक गतिमान ....किंतु, अविचल का साक्षात्कार किया और उसे 'वेद वाक्य' या 'ब्रह्म वाक्य' बना दिया।

अथ वेद कथा....

जय महाकाल...!!!

सौजन्य: भारतीय चिंतन... संकलन कर्ता: