जीवन क्या है ? यह सवाल बहुत पुराना है सदियों से , जब से जीवन है तब से है! जीवन पर बहुत सी व्याख्याएँ सदियों से दी जाती रही है!
परन्तु ---
यदि स्वीकारो तो जीवन सुख है , नास्विकारो तो जीवन दुःख है
यदि जीवन में जो भी है उसको सहज स्वीकार लिया जाये तो सब सुख में बदल जाता है ! और अस्वीकार से सुख भी दुःख हो जाता है !
सुख और दुःख में सिर्फ एक ही अंतर है वह है स्वीकार और अस्वीकार का !
जिसे सहज स्वीकार लिया जाता है वही सुख देता है ! अस्वीकारते ही सुख भी दुःख हो जाता है!
यदि स्वीकारो तो जीवन सुख है , नास्विकारो तो जीवन दुःख है
परन्तु ---
यदि स्वीकारो तो जीवन सुख है , नास्विकारो तो जीवन दुःख है
यदि जीवन में जो भी है उसको सहज स्वीकार लिया जाये तो सब सुख में बदल जाता है ! और अस्वीकार से सुख भी दुःख हो जाता है !
सुख और दुःख में सिर्फ एक ही अंतर है वह है स्वीकार और अस्वीकार का !
जिसे सहज स्वीकार लिया जाता है वही सुख देता है ! अस्वीकारते ही सुख भी दुःख हो जाता है!
यदि स्वीकारो तो जीवन सुख है , नास्विकारो तो जीवन दुःख है
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