कुण्डलिनी और Cymatics :---
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योग विज्ञानं में मानव शरीर में सात उर्जा के केंद्र बताये गये है यथा मूलाधार चक्र,स्वाधिष्ठान, मणिपूर,
अनाहत चक्र, विशुद्ध चक्र, आज्ञा चक्र तथा सहस्रार । जिनके जाग्रति के अलग अलग मंत्र भी दिए गये है ।
प्रथम चक्र मूलाधार चक्र है जहाँ शक्ति वास करती है और इसे कुण्डलिनी शक्ति कहते है । मूलाधार चक्र द्वारा इस शक्ति को क्रमश एक एक कर प्रत्येक चक्र को पार करना होता है । हम यहाँ इस विषय की ओर न जाकर Cymatics की ओर चलते है ।
कुण्डलिनी योग में शरीर में स्थित सात चक्रों को अलग प्रतिक तथा उनके मंत्र दिए गये है |
जिसका वर्णन हमें इस प्रकार मिलता है की प्रथम चक्र का नाम मूलाधार चक्र है ये चार पंखुड़ियों का कमल होता है । और इसकी जाग्रति का मंत्र ' लं ' (Lam) है ।
यदि इन सात चक्रों के सात मन्त्रों पर उपरोक्त(Cymatics) प्रयोग किया जाये तो प्राप्त आकृतियाँ इसी प्रकार की होंगी जैसी चित्र में दर्शाई गई है | इन सातों कमलों की प्रत्येक पंखुड़ी पर संस्कृत का एक अक्षर स्थित होता है अर्थात चक्र से
उच्चारित होता है | किन्तु अतिअल्प होने के कारन कानो द्वारा सुने जाने का तो प्रश्न ही नही ।
इसी तथ्य पर आधारित आधुनिक अल्ट्रासाउंड, इकोग्राफी तथा सोनोग्राफी आदि के माध्यम से शरीर के अंगो से उच्चारित ध्वनी को सुना जाता है और प्राप्त ध्वनी तरंगो की गणना के पश्चात रोग का पता लगाकर निदान किया जाता है ।
इस प्रकार 6 चक्रों तक में संस्कृत के कुल 52 अक्षर तथा अंतिम चक्र में पुरे 52 अक्षर होते है जिसका मूल मंत्र है ॐ । जैसा की हम ऊपर देख चुकें है ।
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