Wednesday, February 26, 2014

चेहरे की झुर्रियाँ के कुछ उपाय ----

झुर्रियाँ कुछ उपाय ----
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झुर्रियाँ कुछ उपाय ----
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आधा चम्मच दुध की ठंडी मलाई में नींबु के रस की चार पाँच बूंदें मिलाकर झुर्रियाँ पर सोते समय अच्छी तरह मलें। पहले गुनगुने पानी से चेहरा अच्छी मलें। फिर गुनगुने पानी से चेहरा अच्छी तरह धोएं और बाद में खुरदरे तौलिए से रगड-पौंछकर सुखा लें। इसके बाद मलाई दोनों हथेलियों से तब तक मलते रहें जब तक कि मलाई घुलकर त्वचा में रम न जाए। बीस मिनट या आधा घण्टे बाद स्नान कर लें या पानी से धो डालें परन्तु साबुन का प्रयोग न करें। नित्य १५ - २० दिन तक नियमित प्रयोग से झुर्रियाँ दुर होती हैं तथा चेहरे के काले दाग मिट जाते हैं।

या पके हुए पपीते का एक टुकडा काटकर चेहरे पर घिसें या गूदा मसलकर चेहरे पर लगाएं। कुछ देर बाद स्नान कर लें। कुछ दिन लगातार ऐसा करने से चेहरे की झुर्रियाँ, धब्बे, दूर होते हैं, मैल नष्ट होता है। व मुहाँसे मिटकर चेहरे की रंगत निखरती है। 

या 'ई' और 'ओ' बोलते हुए एक बार चेहरे को फैलाएं और फिर सिकोडें। दुसरे शब्दों मे 'ई' के उच्चारण के साथ ऐसी मुद्रा बनाएँ मानों कि आप मुस्कुराने जा रहे है। कुछ क्षण इसी मुद्रा में रहने के बाद होठों को आगे की तरफ बढाते हुए इस प्रकार मुद्रा बनाएँ मानों कि आप सीटी बजाना चाह रहे हैं। इससे गालों का अच्छा व्यायाम होता है जिससे गालों की पुष्टि होती है और झुर्रियाँ से बचाव। यह क्रिया एक बार में १५-२० बार करें और दिन में तीन बार करें।

या मुँह से फूँक मारते हुए गाल फुलाएं व पेट पिचकाएँ फिर नाक से सांस खींचें। इस प्रकार १५-२० बार करें और दिन में तीन बार करें। गाल पुष्ट होंगे। 

या चेहरे में आँखों के छोर की रेखाएँ (झुर्रियाँ) मिटाने के लिए खीरे को गोलाई में टुकडे काटकर आँखों के नीचे-ऊपर लगा दें। माथे पर कुछ लम्बे टुंकडे लगाकर तनाव-रहित होकर कुछ देर लेटना चाहिए। इस क्रिया को प्रतिदिन एक बार करने से लगभग दो सप्ताह में ये लकीरें मिट जाती है।

या त्वचा की झुर्रियाँ मिटाने के लिए आधा गिलास गाजर का रस नित्य शाम चार बजे दो तीन सप्ताह लें। 

या चेहरे पर झुर्रियों हों ही न ऐसा करने के लिए अंकुरित चने व मूंग को सुबह व शाम खाएँ। इनमें विद्यमान विटामिन 'इ' झुर्रियाँ मिटाने और युवा बनाये रखने में विशेष सहायक होता है।

आधा चम्मच दुध की ठंडी मलाई में नींबु के रस की चार पाँच बूंदें मिलाकर झुर्रियाँ पर सोते समय अच्छी तरह मलें। पहले गुनगुने पानी से चेहरा अच्छी मलें। फिर गुनगुने पानी से चेहरा अच्छी तरह धोएं और बाद में खुरदरे तौलिए से रगड-पौंछकर सुखा लें। इसके बाद मलाई दोनों हथेलियों से तब तक मलते रहें जब तक कि मलाई घुलकर त्वचा में रम न जाए। बीस मिनट या आधा घण्टे बाद स्नान कर लें या पानी से धो डालें परन्तु साबुन का प्रयोग न करें। नित्य १५ - २० दिन तक नियमित प्रयोग से झुर्रियाँ दुर होती हैं तथा चेहरे के काले दाग मिट जाते हैं।

या पके हुए पपीते का एक टुकडा काटकर चेहरे पर घिसें या गूदा मसलकर चेहरे पर लगाएं। कुछ देर बाद स्नान कर लें। कुछ दिन लगातार ऐसा करने से चेहरे की झुर्रियाँ, धब्बे, दूर होते हैं, मैल नष्ट होता है। व मुहाँसे मिटकर चेहरे की रंगत निखरती है।

या 'ई' और 'ओ' बोलते हुए एक बार चेहरे को फैलाएं और फिर सिकोडें। दुसरे शब्दों मे 'ई' के उच्चारण के साथ ऐसी मुद्रा बनाएँ मानों कि आप मुस्कुराने जा रहे है। कुछ क्षण इसी मुद्रा में रहने के बाद होठों को आगे की तरफ बढाते हुए इस प्रकार मुद्रा बनाएँ मानों कि आप सीटी बजाना चाह रहे हैं। इससे गालों का अच्छा व्यायाम होता है जिससे गालों की पुष्टि होती है और झुर्रियाँ से बचाव। यह क्रिया एक बार में १५-२० बार करें और दिन में तीन बार करें।

या मुँह से फूँक मारते हुए गाल फुलाएं व पेट पिचकाएँ फिर नाक से सांस खींचें। इस प्रकार १५-२० बार करें और दिन में तीन बार करें। गाल पुष्ट होंगे।

या चेहरे में आँखों के छोर की रेखाएँ (झुर्रियाँ) मिटाने के लिए खीरे को गोलाई में टुकडे काटकर आँखों के नीचे-ऊपर लगा दें। माथे पर कुछ लम्बे टुंकडे लगाकर तनाव-रहित होकर कुछ देर लेटना चाहिए। इस क्रिया को प्रतिदिन एक बार करने से लगभग दो सप्ताह में ये लकीरें मिट जाती है।

या त्वचा की झुर्रियाँ मिटाने के लिए आधा गिलास गाजर का रस नित्य शाम चार बजे दो तीन सप्ताह लें।

या चेहरे पर झुर्रियों हों ही न ऐसा करने के लिए अंकुरित चने व मूंग को सुबह व शाम खाएँ। इनमें विद्यमान विटामिन 'इ' झुर्रियाँ मिटाने और युवा बनाये रखने में विशेष सहायक होता है।


Friday, February 21, 2014

List of sanskrit grantha -संस्कृत ग्रन्थों की सूची


संस्कृत ग्रन्थों की सूची
अभिषेक नाटक - भास
अभिज्ञान शाकुन्तलम् - कालिदास
अविमारक - भास
अर्थशास्त्र - चाणक्य
अष्टाध्यायी - पाणिनि
आर्यभटीयम् - आर्यभट
आर्या-सप्तशती - गोवर्धनाचार्य
उरुभंग - भास
ऋतुसंहार - कालिदास
कर्णभार - भास
कादम्बरी - वाणभट्ट
कामसूत्र - वात्स्यायन
काव्यप्रकाश - मम्मट
काव्यमीमांसा - राजशेखर
कालविलास - क्षेमेन्द्र
किरातार्जुनीयम् - भारवि
कुमारसंभव - कालिदास
बृहत्कथा - गुणाढ्य
चण्डीशतक - वाणभट्ट
चरक संहिता - चरक
चारुदत्त -भास
चौरपंचाशिका - बिल्हण
दशकुमारचरितम् - दण्डी
दूतघटोत्कच - भास
दूतवाक्य - भास
न्यायसूत्र - गौतम
नाट्यशास्त्र - भरतमुनि
पञ्चरात्र - भास
प्रतिमानाटकम्- भास
प्रतिज्ञायौगंधरायण - भास
बृहद्यात्रा - वाराहमिहिर
ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त - ब्रह्मगुप्त
ब्रह्मसूत्र - बादरायण
बालचरित्र - भास
मध्यमव्यायोग- भास
मनुस्मृति - मनु
महाभारत - वेद व्यास
मालविकाग्निमित्र - कालिदास
मुकुटतादितक - वाणभट्ट
मेघदूत - कालिदास
मृच्छकटिकम् - शूद्रक
मीमांसा - जैमिनी
योगयात्रा - वाराहमिहिर
योगसूत्र - पतंजलि
रघुवंश - कालिदास
रसरत्नसमुच्चय - वाग्भट्ठ
रसमञ्जरी - शालिनाथ
रसरत्नसमुच्चय - वाग्भट्ठ
राजतरंगिणी - कल्हण
रामायण - महर्षि वाल्मीकि
व्याकरणमहाभाष्य - पतंजलि
वाक्यपदीय - भर्तृहरि
विक्रमोर्वशीय - कालिदास
वैशेषिकसूत्रम् - कणाद
स्वप्नवासवदत्तम - भास
समय-मातृका - क्षेमेन्द्र
साहित्य दर्पण - विश्वनाथ कविराज
सांख्यसूत्र - कपिलमुनि सिद्धान्त शिरोमणि -
हर्षचरित्र - वाणभट्ट"

Monday, February 17, 2014

महाभारत का चक्रव्यूह तथा दूसरे व्यूह

महाभारत का चक्रव्यूह तथा दूसरे व्यूह
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●●● वज्र व्यूह ●●● महाभारत युद्ध के प्रथम दिन अर्जुन ने अपनी सेना को इस व्यूह के आकार में सजाया था... इसका आकार देखने में इन्द्रदेव के वज्र जैसा होता था अतः इस प्रकार के व्यूह को "वज्र व्यूह" कहते हैं!

●●●क्रौंच व्यूह ●●●
क्रौंच एक पक्षी होता है... जिसे आधुनिक अंग्रेजी भाषा में Demoiselle Crane कहते हैं... ये सारस की एक प्रजाति है...इस व्यूह का आकार इसी पक्षी की तरह होता है... युद्ध के दूसरे दिन युधिष्ठिर ने पांचाल पुत्र को इसी क्रौंच व्यूह से पांडव सेना सजाने का सुझाव दिया था... राजा द्रुपद इस पक्षी के सर की तरफ थे, तथा कुन्तीभोज इसकीआँखों के स्थान पर थे... आर्य सात्यकि की सेना इसकी गर्दन के स्थान परथे... भीम तथा पांचाल पुत्र इसके पंखो (Wings) के स्थान पर थे... द्रोपदी के पांचो पुत्र तथा आर्य सात्यकि इसके पंखो की सुरक्षा में तैनात थे...इस तरह से हम देख सकते है की, ये व्यूह बहुत ताकतवर एवं असरदार था... पितामह भीष्म ने स्वयं इस व्यूह से अपनी कौरव सेना सजाई थी... भूरिश्रवा तथा शल्य इसके पंखो की सुरक्षा कर रहे थे... सोमदत्त, अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा इस पक्षी के विभिन्न अंगों का दायित्व संभाल रहे थे...

●●●अर्धचन्द्र व्यूह ●●●
इसकी रचना अर्जुन ने कौरवों के गरुड़ व्यूह के प्रत्युत्तर में की थी... पांचाल पुत्र ने इस व्यूह को बनाने में अर्जुन की सहायता की थी ... इसके दाहिने तरफ भीम थे... इसकी उर्ध्व दिशा में द्रुपद तथा विराट नरेश की सेनाएं थी... उनके ठीकआगे पांचाल पुत्र, नील, धृष्टकेतु, और शिखंडी थे... युधिष्ठिर इसके मध्य में थे... सात्यकि, द्रौपदी के पांच पुत्र,अभिमन्यु, घटोत्कच, कोकय बंधु इस व्यूह के बायीं ओर थे... तथा इसके अग्र भाग पर अर्जुन स्वयं सच्चिदानंद स्वरुप भगवन श्रीकृष्ण के साथ थे!

●●●मंडल व्यूह●●●
भीष्म पितामह ने युद्ध के सांतवे दिन कौरव सेना को इसी मंडल व्यूहद्वारा सजाया था... इसका गठन परिपत्र रूप में होता था... ये बेहद कठिन व्यूहों में से एक था... पर फिर भी पांडवों ने इसे वज्र व्यूह द्वारा भेद दिया था... इसके प्रत्युत्तर में भीष्म ने "औरमी व्यूह" की रचना की थी... इसका तात्पर्य होता है समुद्र... ये समुद्र की लहरों के समान प्रतीत होता था... फिर इसके प्रत्युत्तर में अर्जुन ने "श्रीन्गातका व्यूह" की रचना की थी... ये व्यूह एक भवन के समान दिखता था...

●●●चक्रव्यूह●●●
इसके बारे में सभी ने सुना है... इसकी रचना गुरु द्रोणाचार्य ने युद्ध के तेरहवें दिन की थी... दुर्योधन इस चक्रव्यूह के बिलकुल मध्य (Centre) में था... बाकि सात महारथी इस व्यूह की विभिन्न परतों (layers) में थे... इस व्यूह के द्वार पर जयद्रथ था... सिर्फ अभिमन्यु ही इस व्यूह को भेदने में सफल हो पाया... पर वो अंतिम द्वार को पार नहीं कर सका... तथा बाद में ७ महारथियों द्वारा उसकी हत्या कर दी गयी.

●●●चक्रशकट व्यूह ●●●
अभिमन्यु की हत्या के पश्चात जब अर्जुन, जयद्रथ के प्राण लेने को उद्धत हुए, तब गुरु द्रोणाचार्य ने जयद्रथ की रक्षा के लिए युद्ध के चौदहवें दिन इस व्यूह की रचना की थी!!

Sunday, February 16, 2014

तुलसी- तुलसी में गजब की रोगनाशक शक्ति है। विशेषकर सर्दी, खांसी व बुखार में यह अचूक दवा का काम करती है।


तुलसी
तुलसी

तुलसी में गजब की रोगनाशक शक्ति है। विशेषकर सर्दी, खांसी व बुखार में यह अचूक दवा का काम करती है। इसीलिए भारतीय आयुर्वेद के सबसे प्रमुख ग्रंथ चरक संहिता में कहा गया है।

- तुलसी हिचकी, खांसी,जहर का प्रभाव व पसली का दर्द मिटाने वाली है। इससे पित्त की वृद्धि और दूषित वायु खत्म होती है। यह दूर्गंध भी दूर करती है।

- तुलसी कड़वे व तीखे स्वाद वाली दिल के लिए लाभकारी, त्वचा रोगों में फायदेमंद, पाचन शक्ति बढ़ाने वाली और मूत्र से संबंधित बीमारियों को मिटाने वाली है। यह कफ और वात से संबंधित बीमारियों को भी ठीक करती है।

- तुलसी कड़वे व तीखे स्वाद वाली कफ, खांसी, हिचकी, उल्टी, कृमि, दुर्गंध, हर तरह के दर्द, कोढ़ और आंखों की बीमारी में लाभकारी है। तुलसी को भगवान के प्रसाद में रखकर ग्रहण करने की भी परंपरा है, ताकि यह अपने प्राकृतिक स्वरूप में ही शरीर के अंदर पहुंचे और शरीर में किसी तरह की आंतरिक समस्या पैदा हो रही हो तो उसे खत्म कर दे। शरीर में किसी भी तरह के दूषित तत्व के एकत्र हो जाने पर तुलसी सबसे बेहतरीन दवा के रूप में काम करती है। सबसे बड़ा फायदा ये कि इसे खाने से कोई रिएक्शन नहीं होता है।

तुलसी की मुख्य जातियां- तुलसी की मुख्यत: दो प्रजातियां अधिकांश घरों में लगाई जाती हैं। इन्हें रामा और श्यामा कहा जाता है।

- रामा के पत्तों का रंग हल्का होता है। इसलिए इसे गौरी कहा जाता है।

- श्यामा तुलसी के पत्तों का रंग काला होता है। इसमें कफनाशक गुण होते हैं। यही कारण है कि इसे दवा के रूप में अधिक उपयोग में लाया जाता है।

- तुलसी की एक जाति वन तुलसी भी होती है। इसमें जबरदस्त जहरनाशक प्रभाव पाया जाता है, लेकिन इसे घरों में बहुत कम लगाया जाता है। आंखों के रोग, कोढ़ और प्रसव में परेशानी जैसी समस्याओं में यह रामबाण दवा है।

- एक अन्य जाति मरूवक है, जो कम ही पाई जाती है। राजमार्तण्ड ग्रंथ के अनुसार किसी भी तरह का घाव हो जाने पर इसका रस बेहतरीन दवा की तरह काम करता है।

मच्छरों के काटने से होने वाली बीमारी - मच्छरों के काटने से होने वाली बीमारी, जैसे मलेरिया में तुलसी एक कारगर औषधि है। तुलसी और काली मिर्च का काढ़ा बनाकर पीने से मलेरिया जल्दी ठीक हो जाता है। जुकाम के कारण आने वाले बुखार में भी तुलसी के पत्तों के रस का सेवन करना चाहिए। इससे बुखार में आराम मिलता है। शरीर टूट रहा हो या जब लग रहा हो कि बुखार आने वाला है तो पुदीने का रस और तुलसी का रस बराबर मात्रा में मिलाकर थोड़ा गुड़ डालकर सेवन करें, आराम मिलेगा।

- साधारण खांसी में तुलसी के पत्तों और अडूसा के पत्तों को बराबर मात्रा में मिलाकर सेवन करने से बहुत जल्दी लाभ होता है।

- तुलसी व अदरक का रस बराबर मात्रा में मिलाकर लेने से खांसी में बहुत जल्दी आराम मिलता है।

- तुलसी के रस में मुलहटी व थोड़ा-सा शहद मिलाकर लेने से खांसी की परेशानी दूर हो जाती है।

- चार-पांच लौंग भूनकर तुलसी के पत्तों के रस में मिलाकर लेने से खांसी में तुरंत लाभ होता है।

- शिवलिंगी के बीजों को तुलसी और गुड़ के साथ पीसकर नि:संतान महिला को खिलाया जाए तो जल्द ही संतान सुख की प्राप्ति होती है। 

- किडनी की पथरी में तुलसी की पत्तियों को उबालकर बनाया गया काढ़ा शहद के साथ नियमित 6 माह सेवन करने से पथरी मूत्र मार्ग से बाहर निकल जाती है। 
- फ्लू रोग में तुलसी के पत्तों का काढ़ा, सेंधा नमक मिलाकर पीने से लाभ होता है। 

- तुलसी थकान मिटाने वाली एक औषधि है। बहुत थकान होने पर तुलसी की पत्तियों और मंजरी के सेवन से थकान दूर हो जाती है। 

- प्रतिदिन 4- 5 बार तुलसी की 6-8 पत्तियों को चबाने से कुछ ही दिनों में माइग्रेन की समस्या में आराम मिलने लगता है।

- तुलसी के रस में थाइमोल तत्व पाया जाता है। इससे त्वचा के रोगों में लाभ होता है। 

- तुलसी के पत्तों को त्वचा पर रगड़ दिया जाए तो त्वचा पर किसी भी तरह के संक्रमण में आराम मिलता है।

- तुलसी के पत्तों को तांबे के पानी से भरे बर्तन में डालें। कम से कम एक-सवा घंटे पत्तों को पानी में रखा रहने दें। यह पानी पीने से कई बीमारियां पास नहीं आतीं।

- दिल की बीमारी में यह अमृत है। यह खून में कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करती है। दिल की बीमारी से ग्रस्त लोगों को तुलसी के रस का सेवन नियमित रूप से करना चाहिए।

तुलसी में गजब की रोगनाशक शक्ति है। विशेषकर सर्दी, खांसी व बुखार में यह अचूक दवा का काम करती है। इसीलिए भारतीय आयुर्वेद के सबसे प्रमुख ग्रंथ चरक संहिता में कहा गया है।

- तुलसी हिचकी, खांसी,जहर का प्रभाव व पसली का दर्द मिटाने वाली है। इससे पित्त की वृद्धि और दूषित वायु खत्म होती है। यह दूर्गंध भी दूर करती है।

- तुलसी कड़वे व तीखे स्वाद वाली दिल के लिए लाभकारी, त्वचा रोगों में फायदेमंद, पाचन शक्ति बढ़ाने वाली और मूत्र से संबंधित बीमारियों को मिटाने वाली है। यह कफ और वात से संबंधित बीमारियों को भी ठीक करती है।

- तुलसी कड़वे व तीखे स्वाद वाली कफ, खांसी, हिचकी, उल्टी, कृमि, दुर्गंध, हर तरह के दर्द, कोढ़ और आंखों की बीमारी में लाभकारी है। तुलसी को भगवान के प्रसाद में रखकर ग्रहण करने की भी परंपरा है, ताकि यह अपने प्राकृतिक स्वरूप में ही शरीर के अंदर पहुंचे और शरीर में किसी तरह की आंतरिक समस्या पैदा हो रही हो तो उसे खत्म कर दे। शरीर में किसी भी तरह के दूषित तत्व के एकत्र हो जाने पर तुलसी सबसे बेहतरीन दवा के रूप में काम करती है। सबसे बड़ा फायदा ये कि इसे खाने से कोई रिएक्शन नहीं होता है।

तुलसी की मुख्य जातियां- तुलसी की मुख्यत: दो प्रजातियां अधिकांश घरों में लगाई जाती हैं। इन्हें रामा और श्यामा कहा जाता है।

- रामा के पत्तों का रंग हल्का होता है। इसलिए इसे गौरी कहा जाता है।

- श्यामा तुलसी के पत्तों का रंग काला होता है। इसमें कफनाशक गुण होते हैं। यही कारण है कि इसे दवा के रूप में अधिक उपयोग में लाया जाता है।

- तुलसी की एक जाति वन तुलसी भी होती है। इसमें जबरदस्त जहरनाशक प्रभाव पाया जाता है, लेकिन इसे घरों में बहुत कम लगाया जाता है। आंखों के रोग, कोढ़ और प्रसव में परेशानी जैसी समस्याओं में यह रामबाण दवा है।

- एक अन्य जाति मरूवक है, जो कम ही पाई जाती है। राजमार्तण्ड ग्रंथ के अनुसार किसी भी तरह का घाव हो जाने पर इसका रस बेहतरीन दवा की तरह काम करता है।

मच्छरों के काटने से होने वाली बीमारी - मच्छरों के काटने से होने वाली बीमारी, जैसे मलेरिया में तुलसी एक कारगर औषधि है। तुलसी और काली मिर्च का काढ़ा बनाकर पीने से मलेरिया जल्दी ठीक हो जाता है। जुकाम के कारण आने वाले बुखार में भी तुलसी के पत्तों के रस का सेवन करना चाहिए। इससे बुखार में आराम मिलता है। शरीर टूट रहा हो या जब लग रहा हो कि बुखार आने वाला है तो पुदीने का रस और तुलसी का रस बराबर मात्रा में मिलाकर थोड़ा गुड़ डालकर सेवन करें, आराम मिलेगा।

- साधारण खांसी में तुलसी के पत्तों और अडूसा के पत्तों को बराबर मात्रा में मिलाकर सेवन करने से बहुत जल्दी लाभ होता है।

- तुलसी व अदरक का रस बराबर मात्रा में मिलाकर लेने से खांसी में बहुत जल्दी आराम मिलता है।

- तुलसी के रस में मुलहटी व थोड़ा-सा शहद मिलाकर लेने से खांसी की परेशानी दूर हो जाती है।

- चार-पांच लौंग भूनकर तुलसी के पत्तों के रस में मिलाकर लेने से खांसी में तुरंत लाभ होता है।

- शिवलिंगी के बीजों को तुलसी और गुड़ के साथ पीसकर नि:संतान महिला को खिलाया जाए तो जल्द ही संतान सुख की प्राप्ति होती है।

- किडनी की पथरी में तुलसी की पत्तियों को उबालकर बनाया गया काढ़ा शहद के साथ नियमित 6 माह सेवन करने से पथरी मूत्र मार्ग से बाहर निकल जाती है।
- फ्लू रोग में तुलसी के पत्तों का काढ़ा, सेंधा नमक मिलाकर पीने से लाभ होता है।

- तुलसी थकान मिटाने वाली एक औषधि है। बहुत थकान होने पर तुलसी की पत्तियों और मंजरी के सेवन से थकान दूर हो जाती है।

- प्रतिदिन 4- 5 बार तुलसी की 6-8 पत्तियों को चबाने से कुछ ही दिनों में माइग्रेन की समस्या में आराम मिलने लगता है।

- तुलसी के रस में थाइमोल तत्व पाया जाता है। इससे त्वचा के रोगों में लाभ होता है।

- तुलसी के पत्तों को त्वचा पर रगड़ दिया जाए तो त्वचा पर किसी भी तरह के संक्रमण में आराम मिलता है।

- तुलसी के पत्तों को तांबे के पानी से भरे बर्तन में डालें। कम से कम एक-सवा घंटे पत्तों को पानी में रखा रहने दें। यह पानी पीने से कई बीमारियां पास नहीं आतीं।

- दिल की बीमारी में यह अमृत है। यह खून में कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करती है। दिल की बीमारी से ग्रस्त लोगों को तुलसी के रस का सेवन नियमित रूप से करना चाहिए।

Wednesday, February 12, 2014

pomegranate's medicinal use -अनार का रस पेट पर जमी चर्बी तथा कमर पर टायर की तरह लटकते मांस को कम करने में मददगार साबित हो सकता है।

अनार .............


* रोज एक गिलास अनार का जूस पीजिए। अनार का रस पेट पर जमी चर्बी तथा कमर पर टायर की तरह लटकते मांस को कम करने में मददगार साबित हो सकता है।

* अपच : यदि आपको देर रात की पार्टी से अपच हो गया है तो पके अनार का रस चम्मच, आधा चम्मच सेंका हुआ जीरा पीसकर तथा गुड़ मिलाकर दिन में तीन बार लें।

* प्लीहा और यकृत की कमजोरी तथा पेटदर्द अनार खाने से ठीक हो जाते हैं।

* दस्त तथा पेचिश में : 15 ग्राम अनार के सूखे छिलके और दो लौंग लें। दोनों को एक गिलास पानी में उबालें। फिर पानी आधा रह जाए तो दिन में तीन बार लें। इससे दस्त तथा पेचिश में आराम होता है।

* अनार कब्ज दूर करता है, मीठा होने पर पाचन शक्ति बढ़ाता है। इसका शर्बत एसिडिटी को दूर करता है।

* अत्यधिक मासिक स्राव में : अनार के सूखे छिलकों का चूर्ण एक चम्मच फाँकी सुबह-शाम पानी के साथ लेने से रक्त स्राव रुक जाता है।

* मुँह में दुर्गंध : मुँह में दुर्गंध आती हो तो अनार का छिलका उबालकर सुबह-शाम कुल्ला करें। इसके छिलकों को जलाकर मंजन करने से दाँत के रोग दूर होते हैं।

* अनार आपका मूड अच्छा करता है और साथ ही याददाश्त बढ़ाता है। तनाव से भी आपको निजात दिलाता है।

Wednesday, February 5, 2014

USE SUDDH DESI GHEE AND BR HEALTHY -गाय के घी का महत्त्व -

गाय के घी का महत्त्व -

आज खाने में घी ना लेना एक फेशन बन गया है . बच्चे के जन्म के बाद डॉक्टर्स भी घी खाने से मना करते है . दिल के मरीजों को भी घी से दूर रहने की सलाह दी जाती है .ये गौमाता के खिलाफ एक खतरनाक साज़िश है . रोजाना कम से कम २ चम्मच गाय का घी तो खाना ही चाहिए .
- यह वात और पित्त दोषों को शांत करता है .
- चरक संहिता में कहा गया है की जठराग्नि को जब घी डाल कर प्रदीप्त कर दिया जाए तो कितना ही भारी भोजन क्यों ना खाया जाए , ये बुझती नहीं .
- बच्चे के जन्म के बाद वात बढ़ जाता है जो घी के सेवन से निकल जाता है . अगर ये नहीं निकला तो मोटापा बढ़ जाता है .
- हार्ट की नालियों में जब ब्लोकेज हो तो घी एक ल्यूब्रिकेंट का काम करता है .
- कब्ज को हटाने के लिए भी घी मददगार है .
- गर्मियों में जब पित्त बढ़ जाता है तो घी उसे शांत करता है .
- घी सप्तधातुओं को पुष्ट करता है .
- दाल में घी डाल कर खाने से गेस नहीं बनती .
- घी खाने से मोटापा कम होता है .
- घी एंटी ओक्सिदेंट्स की मदद करता है जो फ्री रेडिकल्स को नुक्सान पहुंचाने से रोकता है .
- वनस्पति घी कभी न खाए . ये पित्त बढाता है और शरीर में जम के बैठता है .
- घी को कभी भी मलाई गर्म कर के ना बनाए . इसे दही जमा कर मथने से इसमें प्राण शक्ति आकर्षित होती है . फिर इसको गर्म करने से घी मिलता है

Tuesday, February 4, 2014

Piles - Ayurvedic treatment

बवासीर या हैमरॉइड से अधिकतर लोग पीड़ित रहते हैं। इस बीमारी के होने का प्रमुख कारण अनियमित दिनचर्या और खान-पान है। बवासीर में होने वाला दर्द असहनीय होता है। 


बवासीर मलाशय के आसपास की नसों की सूजन के कारण विकसित होता है। बवासीर दो तरह की होती है, अंदरूनी और बाहरी। अंदरूनी बवासीर में नसों की सूजन दिखती नहीं पर महसूस होती है, जबकि बाहरी बवासीर में यह सूजन गुदा के बिलकुल बाहर दिखती है। 

बवासीर के आयुर्वेदिक उपचार
डेढ़-दो कागज़ी नींबू अनिमा के साधन से गुदा में लें। 10-15 मिनट के अंतराल के बाद थोड़ी देर में इसे लेते रहिए उसके बाद शौच जायें। यह प्रयोग 4-5 दिन में एक बार करें। इसे 3 बार प्रयोग करने से बवासीर में लाभ होता है ।

हरड या बाल हरड का प्रतिदिन सेवन करने से आराम मिलता है। अर्श (बवासीर) पर अरंडी का तेल लगाने से फायदा होता है। 
नीम का तेल मस्सों पर लगाइए और इस तेली की 4-5 बूंद रोज़ पीने से बवासीर में लाभ होता है।
करीब दो लीटर मट्ठा लेकर उसमे 50 ग्राम पिसा हुआ जीरा और थोडा नमक मिला दें। जब भी प्यास लगे तब पानी की जगह यह छांछ पियें। चार दिन तक यह प्रयोग करेने से मस्सा ठीक हो जाता है। 
इसबगोल भूसी का प्रयोग करने से से अनियमित और कड़े मल से राहत मिलती है। इससे कुछ हद तक पेट भी साफ रहता है और मस्सा ज्यादा दर्द भी नही करता।

बवासीर के उपचार के लिये  आयुर्वेदिक औषधि अर्शकल्प वटी का प्रयोग चिकित्सक की  सलाह अनुसार कर सकते हैं
बवासीर या हैमरॉइड से अधिकतर लोग पीड़ित रहते हैं। इस बीमारी के होने का प्रमुख कारण अनियमित दिनचर्या और खान-पान है। बवासीर में होने वाला दर्द असहनीय होता है।


बवासीर मलाशय के आसपास की नसों की सूजन के कारण विकसित होता है। बवासीर दो तरह की होती है, अंदरूनी और बाहरी। अंदरूनी बवासीर में नसों की सूजन दिखती नहीं पर महसूस होती है, जबकि बाहरी बवासीर में यह सूजन गुदा के बिलकुल बाहर दिखती है।

बवासीर के आयुर्वेदिक उपचार
डेढ़-दो कागज़ी नींबू अनिमा के साधन से गुदा में लें। 10-15 मिनट के अंतराल के बाद थोड़ी देर में इसे लेते रहिए उसके बाद शौच जायें। यह प्रयोग 4-5 दिन में एक बार करें। इसे 3 बार प्रयोग करने से बवासीर में लाभ होता है ।

हरड या बाल हरड का प्रतिदिन सेवन करने से आराम मिलता है। अर्श (बवासीर) पर अरंडी का तेल लगाने से फायदा होता है।
नीम का तेल मस्सों पर लगाइए और इस तेली की 4-5 बूंद रोज़ पीने से बवासीर में लाभ होता है।
करीब दो लीटर मट्ठा लेकर उसमे 50 ग्राम पिसा हुआ जीरा और थोडा नमक मिला दें। जब भी प्यास लगे तब पानी की जगह यह छांछ पियें। चार दिन तक यह प्रयोग करेने से मस्सा ठीक हो जाता है।
इसबगोल भूसी का प्रयोग करने से से अनियमित और कड़े मल से राहत मिलती है। इससे कुछ हद तक पेट भी साफ रहता है और मस्सा ज्यादा दर्द भी नही करता।

बवासीर के उपचार के लिये आयुर्वेदिक औषधि अर्शकल्प वटी का प्रयोग चिकित्सक की सलाह अनुसार कर सकते हैं