Friday, March 13, 2015

Vedic Mesurement of time - समय मापन की वैदिक इकाईया

कुछ नया जानिए-
■क्रति = सैकन्ड का ३४०००वाँ भाग ,
■१ त्रुति = सैकन्ड का ३००वाँ भाग
■२ त्रुति = १ लव ,
■१ लव = १ क्षण
■३० क्षण = १ विपल ,
■६० विपल = १ पल
■६० पल = १ घड़ी (२४ मिनट ) ,
■२.५ घड़ी = १ होरा (घन्टा )
■२४ होरा = १ दिवस (दिन या वार) ,
■७ दिवस = १ सप्ताह
■४ सप्ताह = १ माह ,
■२ माह = १ रितु
■६ रितु = १ वर्ष ,
■१०० वर्ष = १ शताब्दी
■१० शताब्दी = १ सहस्राब्दी ,
■४३२ सहस्राब्दी = १ युग
■२ युग = १ द्वापर युग ,
■३ युग = १ त्रैता युग ,
■४ युग = सतयुग
■सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = १ महायुग
■७६ महायुग = मनवन्तर ,
■१००० महायुग = १ कल्प
■१ नित्य प्रलय = १ महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■१ नैमितिका प्रलय = १ कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■महाकाल = ७३० कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )
विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यही है। जो हमारे देश भारत में बना । ये हमारा भारत जिस पर हमको गर्व है l
इसकी वैज्ञानिकता को अब NASA भी मानता है क्योंकि Theory of relativity and Science of Gravity यही कहती है कि आप धरती और हमारे सौरमंडल से जितना दूर जाओगे समय उतना धीरे चलता है ।
अर्थात, अगर हम मान लें कि ब्रह्मा किसी और सौरमंडल में हैं जहाँ गृह धीरे घूमते हैं और गरूत्वाकर्षण कम है तो वहां समय बहुत धीरे चलता होगा और वहां बीतने वाला एक दिन यहाँ के कई साल के बराबर होगा । इस पर एक कथा श्री कृष्ण के भाई बलराम जी की पत्नी के विषय में मिलती है जो हमें सोचने पर विवश करती है कि क्या पहले के लोग इतने आधुनिक थे कि ब्रह्माण्ड में आ जा सकते थे और क्यों द्वारिका जो गुजरात में समुद्र किनारे है पर सरकार ने खोज करने को मना किया है । क्या छुपा रही है सरकार?

Thursday, February 26, 2015

आर्याव्रत जम्बोद्विप भारतः- Aryavrat jambudweep - Bharat

आर्याव्रत जम्बोद्विप भारतः पोस्ट क्रमांक (1) प्राचिन भारत।
आज के पोष्ट मे मै हमारे धर्मग्रंथो मे वर्नीत भारत के बारे मे बताउंगा,क्योकि भारत इस नाम मे हि हमारे देश की सीमा का रहस्य छूपा है।
हमारे धर्मग्रंथो मे धरती पर भूलोक ही आर्यो के रहने का स्थल बताया गया है और सम्पूर्न धरती पर आर्य और अनार्य का वर्नन है, आर्यो के लीए भूलोक और अनार्यो के लीए पताल लोक का वर्नन है।
हमारे धर्मग्रंथो मे धरती पर भूलोक के अतीरिक्त 7 लोको का वर्नन किया गया है, पहला लोक (1) आरम्भीक तल या अतल दूसरा ( 2 ) वितल (3) नितल (4) गभस्तिमान (5) महातल (6) सुतल (7) पताल।
धरती का वो हीस्सा जहा प्रतीदिन सूर्य प्रकाश दिखाइ देता है उसे भूलोक ( प्रकाश लोक) कहा गया है, संस्कृत मे भ "भू, भो"भा, ये शब्द का इस्तेमाल प्रकाश के लीए किया गया है क्योकि ये शब्द संस्कृत मे वर्नीत भ धातू से लीए गए है जीसका मतलब होता है प्रकाश, भ धातू के इस्तेमाल से बने दूसरे शब्द है भोर-- भ + ओर अर्थ प्रकाश की ओर दूसरा शब्द है भारत (प्रकाशरत) मतलब साफ है आर्यो का जम्बोद्विप धरती का वह हिस्सा है जहा नीयमीत रूप से प्रतीदिन सूर्योदय होता है, धरती का वह हिस्सा प्रकाशरत है और प्रकाश संस्कृत के भ धातू से बने भा शब्द है तो भा ( प्रकाश) रत मतलब भारत हूआ।
हमारे धर्मग्रंथ रामायन जो आज से 17 लाख 25 हजार वर्ष पहले हूआ ( नए पाठको से अनूरोध है कमेंट मे श्रीराम जी का पोस्ट लींक है उसे OPEN करके पढे जरूर) उसमे आपने पढा होगा आर्याव्रत जम्बोद्विप भारत खंडे नगरी अयोध्या राम की, मतलब हूआ आर्याव्रत जम्बोद्विप भारत खंड मे राम की अयोध्या नाम की नगरी है,रामायन मे वर्नीत ये वाक्य शीद्ध करता है कि हमारे देश का नाम भारत भगवान श्रीराम के पहले से है और यदि आप जम्बोद्विप का भौगोलीक छेत्रफल देखेंगे तो आप पाएंगे कि आज का भारत एशीया अरब अफ्रिका आस्ट्रेलीया और यूरोप के जो छेत्र जम्बोद्विप का हिस्सा थे उन सभी छेत्रो मे नीयमीत सूर्योदय होता है वो सभी छेत्र प्रकाशरत है मतलब भारत है।
अगले पोस्ट मे मै आपको बताउंगा कि जम्बोद्विप पर कौन सी जाती, कौन सा धर्म और क्या जीवीका कर्म था।

Tuesday, February 24, 2015

true Facts About Islam - इस्लाम और मुसलमान का सत्य





प्राचीनतम इतिहास … श्री राम के
द्वारा मुस्लिम की असलियत
मै काफी दिन से इस्लाम को समझने
की कोशिस कर रहा था … की आखिर ये
क्या है …ये कोई धर्म है या मत या कोई ….
कुछ और ? लेकिन एक बात मुझे ज्यादा परेशन
करती थी इनका हर काम हिन्दू धर्म के
विपरीत करने का …. मुझे हमेशा से
जिज्ञासा बनी रहती थी … इसको जानने
की … और इसको जानने के लिए
कभी किसी का लेख तो कभी इस्लाम
की धार्मिक पुस्तकों को पढता था ..लेकिन
कभी सही उत्तर नहीं मिला …. कोई कुछ
कहता तो कोई कुछ हर एक के अपने अलग
विचार ..हा कुछ बाते जरुर सामान
होती थी ..यदि मै किसी मुस्लिम दोस्त से
पूछता तो .. इस्लाम को पुराण धर्म
बताता था … एक दिन किसी ने कुछ सबाल
रामचरित्र मानस से पूछा जिसका उत्तर के
लिए मुझे रामचरित्र मानस पढनी पढ़ी …
और साथ में वाल्मीकि रामायण भी …………
कहते है राम उल्टा का नाम लेने से
वाल्मीकि जी डाकू से ऋषि बन गए ..
क्युकि राम से बड़ा राम का नाम ये ही बात
सिद्ध होती है यदि आप इतिहास उठा कर
देखे तो .. मुगलों से लेकर अंग्रेजो को भागने में
राम का नाम ही काम आया है … राम नाम
ही चमत्कार था की पत्थर भी पानी में तैर
सकते है … भगवान शिव और हनुमान
जी जो पलभर में भक्तो के दुःख दूर करते
है ..बो भी राम नाम का जप करते है … राम
से बड़ा राम का नाम … राम ही सत्य
है ..इसका ज्ञान मुझे रामायण से हुआ
जो सबालो के उत्तर कही ना मिले वह मुझे
रामायण जी में मिले ….
क्यों ये लोग राम , कृष्ण को कल्पनिक बोलकर
रामायण और महाभारत को झूठा साबित करने
की कोशिस करते है
आपने देखा होगा मुसलमान भाई और उनके धर्म
गुरु… राम , कृष्ण को कल्पनिक बोलकर
रामायण और महाभारत को झूठा साबित करने
की कोशिस करते रहते है ..इनमे ईसाई और
सकुलर लोग भी पीछे नहीं है …
क्यों आखिर इनलोगों को क्या परेशनी है
कभी आपने सोचा है है क्यों ये एक
सोची समझी रणनीति के तहत कभी राम और
कभी कृष्ण जी को बदनाम करते रहते है …
कभी उनके चरित्र और कभी जन्म को लेकर ..
कारण येही है की राम , कृष्ण को कल्पनिक
बोलकर रामायण और महाभारत
को झूठा साबित कर सत्य को छिपाना ….
मक्का शहर से कुछ मील दूर एक साइनबोर्ड
पर स्पष्ट उल्लेख है कि “इस इलाके में गैर-
मुस्लिमों का आना प्रतिबन्धित है…”। यह
काबा के उन दिनों की याद ताज़ा करता है,
जब नये-नये आये इस्लाम ने इस इलाके पर
अपना कब्जा कर लिया था। इस इलाके में गैर-
मुस्लिमों का प्रवेश इसीलिये प्रतिबन्धित
किया गया है, ताकि इस कब्जे के
निशानों को छिपाया जा सके।”
ये हुक्म कुरआन में दिया गया कि गैर-
मुस्लिमों को काबे से दुर कर दो….उन्हे
मस्जिदे-हराम के पास भी नही आने देना
ये सारे प्रमाण ये बताने के लिए हैं
कि क्यों मुस्लिम इतना डरे रहते हैं इस मंदिर
को लेकर..इस मस्जिद के रहस्य को जानने के
लिए कुछ हिंदुओं ने प्रयास किया तो वे क्रूर
मुसलमानों के हाथों मार डाले गए और जो कुछ
बच कर लौट आए वे भी पर्दे के कारण
ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं कर पाए.अंदर
के अगर शिलालेख पढ़ने में सफलता मिल
जाती तो ज्यादा स्पष्ट
हो जाता.इसकी दीवारें हमेशा ढकी रहने के
कारण पता नहीं चल पाता है कि ये किस
पत्थर का बना हुआ है पर प्रांगण में जो कुछ
इस्लाम-पूर्व अवशेष रहे हैं
वो बादामी या केसरिया रंग के हैं..संभव है
काबा भी केसरिया रंग के पत्थर से
बना हो..एक बात और ध्यान देने वाली है
कि पत्थर से मंदिर बनते हैं मस्जिद
नहीं..भारत में पत्थर के बने हुए प्राचीन-
कालीन हजारों मंदिर मिल जाएँगे…
१- मुसलमान कहते हैं कि कुरान ईश्वरीय
वाणी है तथा यह धर्म अनादि काल से
चली आ रही है,परंतु ये बात आधारहीन
तथा तर्कहीन हैं . . .
# किसी भी सीधांत को रद्द करने के लिए
उसको पहले सही तरीक़े से समझ लें. इसलाम
धर्म का दावा है की दुनिया में शुरू में एक
ही धर्म था और वो इस्लाम था. उस वक़्त
उसकी भाषा और ,नाम अलग होगा. फिर
लोगों ने धर्म परिवर्तन किए और असली धर्म
की छबि बदल गयी. फिर अल्लाह ने धर्म
को पुनः स्थापित किया. फिर ये
होता रहा और अल्लाह अपने पैगंबरों से वापस
धर्म को उसकी असली शक्ल में स्थापित
करता रहा. इस सिलसिले में मोहम्मद पैगंबर
अल्लाह के आखरी पैगंबर हैं, और ये इस्लाम
की आखरी शक्ल है, इसके बाद बदलाओ
या बिगाड़ होने पर प्रलय होगा.
ये उसी तरह है जैसे हम अपने संवीधन बदलते हैं.
मौजूदा इस्लाम , इस्लाम धर्म
का आखरी revision है. आप खुद समझ लें के आप
हज़ारों साल पुराना संविधान follow कर
रहे हैं.
2. – आदि धर्म-ग्रंथ संस्कृत में
होनी चाहिए अरबी या फारसी में
नहीं|
भाई, क़ुरान को मुसलमान कब आदि ग्रंथ कहते
हैं. अगर आप ने क़ुरान पढ़ा तो आप देखोगे के उस
में क़ुरान से पहले के ग्रंथों पर भी बात
की गयी है. एक जगह किसी ग्रंथ
को आदि ग्रंथ कहा गया है जिस के बारे में हम
लोग खुद कहते हैं के शायद ये वेदों के बारे में है
‪#‎बहुत‬ सी भाषाओं में बहुत से शब्द मिलते जुलते
हैं, किसी भाषा में
अल्लाह शब्द भी संस्कृत शब्द अल्ला से बना है
जिसका अर्थ देवी होता है|
जिस प्रकार हमलोग मंत्रों में “या” शब्द
का प्रयोग करते हैं देवियों को पुकारने में जैसे
“या देवी सर्वभूतेषु….”, “या वीणा वर ….”
वैसे ही मुसलमान भी पुकारते हैं
“या अल्लाह”..इससे सिद्ध होता है कि ये
अल्लाह शब्द भी ज्यों का त्यों वही रह
गया बस अर्थ बदल दिया गया|
एक मुस्लिम भाई ने कहा जनाब आपसे किसने
कहा कि इसलाम सातवी-आठवीं सदी में हुआ…
जब से दुनिया बनी है तब से इस्लाम है…
अल्लाह ने दुनिया में 1,24,000 नबी और
रसुल भेजे और सब पर किताबे नाज़िल की…
कुरआन में नाम से 25 नबी और 4
किताबों का ज़िक्र है…. कुरआन में बताये गये
२५ नबी व रसुलों के नाम बता रहा हूं…उनके
नामों के इंग्लिश में वो नाम दिये है जिन
नामों से इन नबीयों का ज़िक्र “बाईबिल” में
है….
1. आदम अलैहि सलाम (Adam)
2. इदरीस अलैहि सलाम (Enoch)
3. नुह अलैहि सलाम (Noah)
4. हुद अलैहि सलाम (Eber)
5. सालेह अलैहि सलाम (Saleh)
6. ईब्राहिम अलैहि सलाम (Abraham)
7. लुत अलैहि सलाम (Lot)
8. इस्माईल अलैहि सलाम (Ishmael)
9. इशाक अलैहि सलाम (Isaac)
10. याकुब अलैहि सलाम (Jacob)
11. युसुफ़ अलैहि सलाम (Joseph)
12. अय्युब अलैहि सलाम (Job)
13. शुऎब अलैहि सलाम (Jethro)
14. मुसा अलैहि सलाम (Moses)
15. हारुन अलैहि सलाम (Aaron)
16. दाऊद अलैहि सलाम (David)
17. सुलेमान अलैहि सलाम (Solomon)
18. इलियास अलैहि सलाम (Elijah)
19. अल-यासा अलैहि सलाम (Elisha)
20. युनुस अलैहि सलाम (Jonah)
21. धुल-किफ़्ल अलैहि सलाम (Ezekiel)
22. ज़करिया अलैहि सलाम (Zechariah)
23. याहया अलैहि सलाम (John the
Baptist)
24. ईसा अलैहि सलाम (Jesus)
25. आखिरी रसुल सल्लाहो अलैहि वस्सलम
(Ahmed)
इन नबीयों में से छ्ठें नबी “ईब्राहिम
अलैहि सलाम” जिन्होने “काबा” को तामिल
किया था उनका जन्म 1900 ईसा पूर्व हुआ
था….
# तो भाई केबल २५ नवी की जानकारी के
दम पर ये इस्लाम को पुराना धर्म बोल रहे है
भाई बाकि 1,24,000 नबी और रसुल
का क्या होगा ?????????
ला इलाहा इल्लल्लाह, मुहम्मद उर-रसूलुल्लाह
इस कलमे का अर्थ मुहम्मद ने बताया है
की ईश्वर एक है और मुहम्मद उसके पैगम्बर है
… जब की सब जानते है की इला एक
देवी थी जिनकी पूजा होती थी और अल्लाह
कोन था आज हम इस को भी समझेगे की सत्य
क्या था ….?
और बहुत कुछ ये भी पढ़ा ….
अरब की प्राचीन समृद्ध वैदिक संस्कृति और
भारत।।।।।
अरब देश का भारत, भृगु के पुत्र शुक्राचार्य
तथा उनके पोत्र और्व से ऐतिहासिक संबंध
प्रमाणित है, यहाँ तक कि “हिस्ट्री ऑफ
पर्शिया” के लेखक साइक्स का मत है कि अरब
का नाम और्व के ही नाम पर पड़ा, जो विकृत
होकर “अरब” हो गया। भारत के उत्तर-
पश्चिम में इलावर्त था, जहाँ दैत्य और दानव
बसते थे, इस इलावर्त में एशियाई रूस
का दक्षिणी-पश्चिमी भाग, ईरान
का पूर्वी भाग तथा गिलगित
का निकटवर्ती क्षेत्र सम्मिलित था।
आदित्यों का आवास स्थान-देवलोक भारत के
उत्तर-पूर्व में स्थित हिमालयी क्षेत्रों में
रहा था। बेबीलोन की प्राचीन गुफाओं में
पुरातात्त्विक खोज में जो भित्ति चित्र मिले
है, उनमें विष्णु को हिरण्यकशिपु के भाई
हिरण्याक्ष से युद्ध करते हुए उत्कीर्ण
किया गया है।
उस युग में अरब एक बड़ा व्यापारिक केन्द्र
रहा था, इसी कारण देवों, दानवों और
दैत्यों में इलावर्त के विभाजन को लेकर 12
बार युद्ध ‘देवासुर संग्राम’ हुए। देवताओं के
राजा इन्द्र ने
अपनी पुत्री ज्यन्ती का विवाह शुक्र के साथ
इसी विचार से किया था कि शुक्र उनके
(देवों के) पक्षधर बन जायें, किन्तु शुक्र
दैत्यों के ही गुरू बने रहे। यहाँ तक कि जब
दैत्यराज बलि ने शुक्राचार्य का कहना न
माना, तो वे उसे त्याग कर अपने पौत्र और्व
के पास अरब में आ गये और वहाँ 10 वर्ष रहे।
साइक्स ने अपने इतिहास ग्रन्थ “हिस्ट्री ऑफ
पर्शिया” में लिखा है कि ‘शुक्राचार्य लिव्ड
टेन इयर्स इन अरब’। अरब में शुक्राचार्य
का इतना मान-सम्मान हुआ कि आज जिसे
‘काबा’ कहते है, वह वस्तुतः ‘काव्य
शुक्र’ (शुक्राचार्य) के सम्मान में निर्मित
उनके आराध्य भगवान शिव का ही मन्दिर है।
कालांतर में ‘काव्य’ नाम विकृत होकर ‘काबा’
प्रचलित हुआ। अरबी भाषा में ‘शुक्र’ का अर्थ
‘बड़ा’ अर्थात ‘जुम्मा’ इसी कारण
किया गया और इसी से ‘जुम्मा’ (शुक्रवार)
को मुसलमान पवित्र दिन मानते है।
“बृहस्पति देवानां पुरोहित आसीत्,
उशना काव्योऽसुराणाम्”-जैमिनिय
ब्रा.(01-125)
अर्थात बृहस्पति देवों के पुरोहित थे
और उशना काव्य (शुक्राचार्य)
असुरों के।
प्राचीन अरबी काव्य संग्रह गंथ ‘सेअरूल-ओकुल’
के 257वें पृष्ठ पर हजरत मोहम्मद से 2300
वर्ष पूर्व एवं ईसा मसीह से 1800 वर्ष
पूर्व पैदा हुए लबी-बिन-ए-अरव्तब-बिन-ए-
तुरफा ने अपनी सुप्रसिद्ध कविता में भारत
भूमि एवं वेदों को जो सम्मान दिया है, वह
इस प्रकार है-
“अया मुबारेकल अरज मुशैये
नोंहा मिनार हिंदे।
व अरादकल्लाह मज्जोनज्जे जिकरतुन।
1।
वह लवज्जलीयतुन ऐनाने सहबी अरवे
अतुन जिकरा।
वहाजेही योनज्जेलुर्ररसूल मिनल
हिंदतुन।2।
यकूलूनल्लाहः या अहलल अरज आलमीन
फुल्लहुम।
फत्तेबेऊ जिकरतुल वेद हुक्कुन मालन
योनज्वेलतुन।3।
वहोबा आलमुस्साम वल यजुरमिनल्लाहे
तनजीलन।
फऐ नोमा या अरवीयो मुत्तवअन
योवसीरीयोनजातुन।4।
जइसनैन हुमारिक अतर नासेहीन का-अ-
खुबातुन।
व असनात अलाऊढ़न व होवा मश-ए-
रतुन।5।”
अर्थात- (1) हे भारत की पुण्यभूमि (मिनार
हिंदे) तू धन्य है, क्योंकि ईश्वर ने अपने ज्ञान
के लिए तुझको चुना। (2) वह ईश्वर का ज्ञान
प्रकाश, जो चार प्रकाश स्तम्भों के सदृश्य
सम्पूर्ण जगत् को प्रकाशित करता है, यह
भारतवर्ष (हिंद तुन) में ऋषियों द्वारा चार
रूप में प्रकट हुआ। (3) और परमात्मा समस्त
संसार के मनुष्यों को आज्ञा देता है कि वेद,
जो मेरे ज्ञान है, इनके अनुसार आचरण करो।
(4) वह ज्ञान के भण्डार साम और यजुर है,
जो ईश्वर ने प्रदान किये। इसलिए, हे मेरे
भाइयों! इनको मानो, क्योंकि ये हमें मोक्ष
का मार्ग बताते है। (5) और दो उनमें से रिक्,
अतर (ऋग्वेद, अथर्ववेद) जो हमें भ्रातृत्व
की शिक्षा देते है, और जो इनकी शरण में आ
गया, वह कभी अन्धकार को प्राप्त
नहीं होता।
इस्लाम मजहब के प्रवर्तक मोहम्मद स्वयं
भी वैदिक परिवार में हिन्दू के रूप में जन्में थे,
और जब उन्होंने अपने हिन्दू परिवार
की परम्परा और वंश से संबंध तोड़ने और स्वयं
को पैगम्बर घोषित करना निश्चित किया,
तब संयुक्त हिन्दू परिवार छिन्न-भिन्न
हो गया और काबा में स्थित महाकाय
शिवलिंग (संगे अस्वद) के रक्षार्थ हुए युद्ध में
पैगम्बर मोहम्मद के चाचा उमर-बिन-ए-
हश्शाम को भी अपने प्राण गंवाने पड़े। उमर-
बिन-ए-हश्शाम का अरब में एवं केन्द्र
काबा (मक्का) में इतना अधिक सम्मान
होता था कि सम्पूर्ण अरबी समाज,
जो कि भगवान शिव के भक्त थे एवं वेदों के
उत्सुक गायक तथा हिन्दू देवी-देवताओं के
अनन्य उपासक थे, उन्हें अबुल हाकम अर्थात
‘ज्ञान का पिता’ कहते थे। बाद में मोहम्मद के
नये सम्प्रदाय ने उन्हें ईष्यावश अबुल जिहाल
‘अज्ञान का पिता’ कहकर उनकी निन्दा की।
जब मोहम्मद ने मक्का पर आक्रमण किया, उस
समय वहाँ बृहस्पति, मंगल, अश्विनी कुमार,
गरूड़, नृसिंह की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित थी।
साथ ही एक
मूर्ति वहाँ विश्वविजेता महाराजा बलि की
भी थी, और दानी होने की प्रसिद्धि से
उसका एक हाथ सोने का बना था। ‘Holul’ के
नाम से अभिहित यह मूर्ति वहाँ इब्राहम और
इस्माइल की मूर्त्तियो के बराबर रखी थी।
मोहम्मद ने उन सब मूर्त्तियों को तोड़कर
वहाँ बने कुएँ में फेंक दिया, किन्तु तोड़े गये
शिवलिंग का एक टुकडा आज भी काबा में
सम्मानपूर्वक न केवल प्रतिष्ठित है,वरन् हज
करने जाने वाले मुसलमान उस काले
(अश्वेत) प्रस्तर खण्ड अर्थात ‘संगे
अस्वद’ को आदर मान देते हुए चूमते है।
प्राचीन अरबों ने सिन्ध को सिन्ध
ही कहा तथा भारतवर्ष के अन्य
प्रदेशों को हिन्द निश्चित किया। सिन्ध से
हिन्द होने की बात बहुत ही अवैज्ञानिक है।
इस्लाम मत के प्रवर्तक मोहम्मद के पैदा होने
से 2300 वर्ष पूर्व यानि लगभग 1800
ईश्वी पूर्व भी अरब में हिंद एवं हिंदू शब्द
का व्यवहार ज्यों का त्यों आज ही के अर्थ में
प्रयुक्त होता था।
अरब की प्राचीन समृद्ध संस्कृति वैदिक
थी तथा उस समय ज्ञान-विज्ञान, कला-
कौशल, धर्म-संस्कृति आदि में भारत (हिंद) के
साथ उसके प्रगाढ़ संबंध थे। हिंद नाम
अरबों को इतना प्यारा लगा कि उन्होंने उस
देश के नाम पर अपनी स्त्रियों एवं बच्चों के
नाम भी हिंद पर रखे ।
अरबी काव्य संग्रह ग्रंथ ‘ सेअरूल-ओकुल’ के
253वें पृष्ठ पर हजरत मोहम्मद के
चाचा उमर-बिन-ए-हश्शाम की कविता है
जिसमें उन्होंने हिन्दे यौमन एवं गबुल हिन्दू
का प्रयोग बड़े आदर से किया है । ‘उमर-बिन-
ए-हश्शाम’ की कविता नयी दिल्ली स्थित
मन्दिर मार्ग पर श्री लक्ष्मीनारायण
मन्दिर (बिड़ला मन्दिर) की वाटिका में
यज्ञशाला के लाल पत्थर के स्तम्भ (खम्बे) पर
काली स्याही से लिखी हुई है, जो इस प्रकार
है -
” कफविनक जिकरा मिन उलुमिन तब
असेक ।
कलुवन अमातातुल हवा व तजक्करू ।1।
न तज खेरोहा उड़न एललवदए लिलवरा ।
वलुकएने जातल्लाहे औम असेरू ।2।
व अहालोलहा अजहू अरानीमन महादेव
ओ ।
मनोजेल इलमुद्दीन मीनहुम व सयत्तरू ।
3।
व सहबी वे याम फीम कामिल हिन्दे
यौमन ।
व यकुलून न लातहजन फइन्नक तवज्जरू ।
4।
मअस्सयरे अरव्लाकन हसनन कुल्लहूम ।
नजुमुन अजा अत सुम्मा गबुल हिन्दू ।5।
अर्थात् – (1) वह मनुष्य, जिसने सारा जीवन
पाप व अधर्म में बिताया हो, काम, क्रोध में
अपने यौवन को नष्ट किया हो। (2)
अदि अन्त में उसको पश्चाताप हो और भलाई
की ओर लौटना चाहे, तो क्या उसका कल्याण
हो सकता है ? (3) एक बार भी सच्चे हृदय से
वह महादेव जी की पूजा करे, तो धर्म-मार्ग
में उच्च से उच्च पद को पा सकता है। (4) हे
प्रभु ! मेरा समस्त जीवन लेकर केवल एक दिन
भारत (हिंद) के निवास का दे दो,
क्योंकि वहाँ पहुँचकर मनुष्य जीवन-मुक्त
हो जाता है। (5) वहाँ की यात्रा से सारे
शुभ कर्मो की प्राप्ति होती है, और आदर्श
गुरूजनों (गबुल हिन्दू) का सत्संग मिलता है
मुसलमानों के पूर्वज कोन?(जाकिर नाइक के
चेलों को समर्पित लेख)
स्व0 मौलाना मुफ्ती अब्दुल कयूम
जालंधरी संस्कृत ,हिंदी,उर्दू,फारसी व
अंग्रेजी के जाने-माने विद्वान् थे।
अपनी पुस्तक “गीता और कुरआन “में उन्होंने
निशंकोच स्वीकार किया है कि,”कुरआन”
की सैकड़ों आयतें गीता व उपनिषदों पर
आधारित हैं।
मोलाना ने मुसलमानों के पूर्वजों पर
भी काफी कुछ लिखा है । उनका कहना है
कि इरानी “कुरुष ” ,”कौरुष “व अरबी कुरैश
मूलत : महाभारत के युद्ध के बाद भारत से
लापता उन २४१६५ कौरव सैनिकों के वंसज
हैं, जो मरने से बच गए थे।
अरब में कुरैशों के अतिरिक्त “केदार” व
“कुरुछेत्र” कबीलों का इतिहास भी इसी तथ्य
को प्रमाणित करता है। कुरैश वंशीय
खलीफा मामुनुर्र्शीद(८१३-८३५) के
शाशनकाल में निर्मित खलीफा का हरे रंग
का चंद्रांकित झंडा भी इसी बात को सिद्ध
करता है।
कौरव चंद्रवंशी थे और कौरव अपने आदि पुरुष
के रूप में चंद्रमा को मानते थे। यहाँ यह तथ्य
भी उल्लेखनीय है कि इस्लामी झंडे में
चंद्रमां के ऊपर “अल्लुज़ा” अर्ताथ शुक्र तारे
का चिन्ह,अरबों के कुलगुरू “शुक्राचार्य
“का प्रतीक ही है। भारत के
कौरवों का सम्बन्ध शुक्राचार्य से
छुपा नहीं है।
इसी प्रकार कुरआन में “आद “जाती का वर्णन
है,वास्तव में द्वारिका के जलमग्न होने पर
जो यादव वंशी अरब में बस गए थे,वे
ही कालान्तर में “आद” कोम हुई।
अरब इतिहास के विश्वविख्यात विद्वान्
प्रो० फिलिप के अनुसार
२४वी सदी ईसा पूर्व में “हिजाज़” (मक्का-
मदीना) पर जग्गिसा(जगदीश) का शासन
था।२३५० ईसा पूर्व में शर्स्किन ने
जग्गीसी को हराकर अंगेद नाम से
राजधानी बनाई। शर्स्किन वास्तव में
नारामसिन अर्थार्त नरसिंह
का ही बिगड़ा रूप है। १००० ईसा पूर्व
अन्गेद पर गणेश नामक राजा का राज्य था।
६ वी शताब्दी ईसा पूर्व हिजाज पर हारिस
अथवा हरीस का शासन था। १४वी सदी के
विख्यात अरब इतिहासकार “अब्दुर्रहमान
इब्ने खलदून ” की ४० से अधिक भाषा में
अनुवादित पुस्तक “खलदून का मुकदमा” में
लिखा है कि ६६० इ० से १२५८ इ० तक
“दमिश्क” व “बग़दाद”
की हजारों मस्जिदों के निर्माण में
मिश्री,यूनानी व भारतीय वातुविदों ने
सहयोग किया था। परम्परागत सपाट छत
वाली मस्जिदों के स्थान पर शिव
पिंडी कि आकृति के गुम्बदों व उस पर अष्ट दल
कमल कि उलट उत्कीर्ण शैली इस्लाम
को भारतीय वास्तुविदों की देन है।
इन्ही भारतीय वास्तुविदों ने “बैतूल
हिक्मा” जैसे ग्रन्थाकार का निर्माण
भी किया था।
अत: यदि इस्लाम वास्तव में
यदि अपनी पहचान कि खोंज करना चाहता है
तो उसे इसी धरा ,संस्कृति व प्रागैतिहासिक
ग्रंथों में स्वं
को खोजना पड़ेगा……………………………..
भाइयो एक सत्य में
आपको बताना चाहुगा की मुहम्मद को लेकर
मुसलमानों में जो गलतफैमी है की मुहम्मद ने
अरब से अत्याचारों को दूर किया … केबल
अत्याचारियो को मारा , समाज
की बुरयियो को दूर किया अरब में भाई भाई
का दुश्मन था , स्त्रियो की दशा सुधारी …
मुहमद एक अनपढ़ (उम्मी ) था …. आदि ..सत्य
क्या है आप उस समय की जानकारियों से
पता लगा सकते है … जब की उस समय अरब में
सनातन धर्म ही था ..इसके कई प्रमाण है
१- जब मुहम्मद का जन्म हुआ
तो पिता की म्रत्यु हो चुकी थी ..
मा भी कुछ सालो बाद चल बसी .. मुहम्मद
की देखभाल उनके चाचा ने की … यदि समाज
में लालच , लोभ होता तो क्या उनके
चाचा उनको पलते ?
२- खालिदा नामक पढ़ी लिखी स्त्री का खुद
का व्यापर होना सनातन धर्म में
स्त्रियो की आजादी का सबुत है… मुहमम्द
वहा पर नोकरी करते थे ?
३- ३ बार शादी के बाद
भी विधवा स्त्री का खुद मुहम्मद से
शादी का प्रस्ताब ? स्त्रियो को खुद अपने
लिए जीवन साथी चुने और विधवा स्त्री होने
पर भी शादी और व्यापर की आजादी …
सनातन धर्म के अंदर ..
४- खालिदा का खुद शिक्षित होना सनातन
धर्म में स्त्रियो को शिक्षा का सबुत है
५- मुहम्मद का २५ साल का होकर ४० साल
की स्त्री से विवाह ..किन्तु किसी ने कोई
हस्तक्षेप नहीं किया ..सनातन धर्म में हर एक
को आजादी ..कोई बंधन नहीं
६- मुहम्मद का धार्मिक प्रबचन
देना किसी का कोई विरोध ना होना जब
तक सनातन धर्म के अंदर नये धर्म का प्रचार
७- मुहम्मद यदि अनपढ़ होते तो क्या व्यापर
कर सकते थे ? नहीं ..मुहम्मद पहले अनपढ़ थे
लेकिन बाद में उनकी पत्नी और साले ने
उनको पढ़ना लिखना सीखा दिया था …
सबूत मरते समय मुहम्मद का कोई वसीयत
ना बनाने पर कलम और कागज
का ना मिलना ..और कुछ लोगो का उनपर
वसीयत ना बनाने पर रोष करना …
मुहम्मद को उनकी पत्नी ने सारे धार्मिक
पुस्तकों जैसे रामायण , गीता , महाभारत ,
वेद, वाईविल, और यहूदी धार्मिक
पुस्तकों को पढ़ कर सुनाया था और
पढ़ना लिखना सीखा दिया था , आप
किसी को लिखना पढ़ना सीखा सकते
हो लेकिन बुद्धि का क्या ?…जो आज तक उसके
मानने बालो की बुद्धि पर असर है ..
जो कुरान और हदीश में मुहम्मद में
लिखा या उनके कहानुसार लिखा गया बाद
में , लेकिन किसी को कितना ही कुछ
भी सुना दो लेकिन व्यक्ति की सोच को कोन
बदल सकता है मुझे तुलसीदास जी की चोपाई
याद आ रही है जो मुहम्मद पर सटीक बैठती है
ढोल , गवाँर ,शूद्र, पसु , नारी , सकल
ताडना के अधिकारी …..
आप किसी कितना ज्ञान देदो बो बेकार
हो जाता है जब कोई किसी चीज का गलत
अर्थ लगा कर समझता है गवाँर बुद्धि में
क्या आया और उसने क्या समझा ये आप कुरान में
जान सकते है …. कुरान में वेदों , रामायण ,
गीता , पुराणों का ज्ञान मिलेगा लेकिन
उसका अर्थ गलत मिलेगा ………
चलिए आपको कुछ रामायण जी से इस्लाम
की जानकारी लेते है ………
ये उस समय की बात है जन राम और लक्ष्मण
जी और भरत आपस में सत्य कथाओ को उन रहे
थे .. तब प्रभु श्री राम ने राजा इल
की कथा सुनायी जो वाल्मीकि रामायण में
उत्तरकांड में आती है .. मै श्लोको के अनुसार
ना ले कर सारांश में बता रहा हू ……
उत्तरकांड का ८७ बा सर्ग :=
प्रजापति कर्दम के पुत्र राजा इल बहिकदेश
(अरब ईरान क्षेत्र के जो इलावर्त क्षेत्र
कहलाता था ) के राजा थे , बो धर्म और
न्याय से राज्य करते थे .. सपूर्ण संसार के
जीव , राक्षस , यक्ष , जानबर आदि उनसे भय
खाते थे .एक बार राजा अपने सैनिको के साथ
शिकार पर गए उन्होंने कई हजार हिसक पशुओ
का वध किया था शिकार में ,राजा उस
निर्जन प्रदेश में गए जहा महासेन
(स्वामी कार्तीय) का जन्म हुआ
था बहा भगवन शिव अपने को स्त्री रूप में
प्रकट करके देवी पार्वती का प्रिय पात्र
बनने करने की इच्छा से वह पर्वतीय झरने के
पास उनसे विहार कर रहे थे .. वह जो कुछ
भी चराचर प्राणी थे वे सब स्त्री रूप में
हो गए थे , राजा इल भी सेवको के साथ
स्त्रीलिंग में परिणत हो गए …. शिव
की शरण में गए लेकिन शिवजी ने पुरुषत्व
को छोड़ कर कुछ और मानने को कहा ,
राजा दुखी हुए फिर बो माँ पार्वती जी के
पास गए और माँ की वंदना की .. फिर
माँ पार्वती ने राजा से बोली में आधा भाग
आपको दे सकती हू आधा भगवन शिव ही जाने
… राजा इल को हर्ष हुआ .. माँ पार्वती ने
राजा की इच्छानुसार वर दी की १ माह
पुरुष राजा इल , और एक माह
नारी इला रहोगे जीवन भर .. लेकिन
दोनों ही रूपों में तुम अपने एक रूप का स्मरण
नहीं रहेगा ..इस प्रकार राजा इल और
इला बन कर रहने लगे
८८ बा सर्ग := चंद्रमा के पुत्र पुत्र बुध
( चंद्रमा और गुरु ब्रस्पति की पत्नी के
पुत्र ) जो की सरोवर में ताप कर रहे थे
इला ने उनको और उन्होंने इला को देखा …मन
में आसक्त हो गया उन्होंने इला की सेविका से
जानकारी पूछी ..बाद में बुध ने
पुण्यमयी आवर्तनी विधा का आवर्तन
(स्मरण ) किया और राजा के विषय में सम्पुण
जानकारी प्राप्त करली , बुध ने सेविकाओ
को किंपुरुषी (किन्नरी) हो कर पर्वत के
किनारे रहने और निवास करने को बोला .. आगे
चल कर तुम सभी स्त्रियों को किंपुरुष प्राप्त
होगे .. बुध की बात सुन किंपुरुषी नाम से
प्रसिद्ध हुयी सेविकाए जो संख्या में बहुत
थी पर्वत पर रहने लगी ( इस प्रकार किंपुरुष
जाति का जन्म हुआ )
८९ सर्ग := बुध का इला को अपना परिचय
देना और इला का उनके साथ मे में रमण
करना… एक माह राजा इल के रूप में एक माह
रूपमती इला के रूप में रहना … इला और बुध
का पुत्र पुरुरवा हुए
९० सर्ग;= राजा इल को अश्वमेध के अनुष्ठन
से पुरुत्व की प्राप्ति बुध के द्वारा रूद्र
( शिव ) की आराधना करना और यज्ञ
करना मुनियों के द्वारा ..महादेव को दरशन
देकर राजा इल को पूर्ण पुरुषत्व देना …
राजा इल का बाहिक देश छोड़ कर मध्य
प्रदेश (गंगा यमुना संगम के निकट )
प्रतिष्ठानपुर बसाया बाद में राजा इल के
ब्रहम लोक जाने के बाद पुरुरवा का राज्य के
राजा हुए
- इति समाप्त
आज के लेख से आपके प्रश्न और उसके जबाब …..
1. इस्लाम में बोलते है की इस्लाम सनातन
धर्म है और बहुत पुराना है ? और अल्लाह कोन
था ? कलमा में क्या है ?
# भाई आसान सबाल का आसान उत्तर है
की सनातन धर्म सम्पूर्ण संसार में था और
लोगो का विश्वास धर्म पर बह

Friday, February 13, 2015

हमारे प्राचीन महादेश का नाम “भारतवर्ष” कैसे पड़ा.-how india get name - bharatvarsha( jambudveep)



क्या आप जानते हैं कि....... ....... हमारे प्राचीन महादेश का नाम “भारतवर्ष” कैसे पड़ा....?????

साथ ही क्या आप जानते हैं कि....... हमारे प्राचीन हमारे महादेश का नाम ....."जम्बूदीप" था....?????

परन्तु..... क्या आप सच में जानते हैं जानते हैं कि..... हमारे महादेश को ""जम्बूदीप"" क्यों कहा जाता है ... और, इसका मतलब क्या होता है .....??????

दरअसल..... हमारे लिए यह जानना बहुत ही आवश्यक है कि ...... भारतवर्ष का नाम भारतवर्ष कैसे पड़ा.........????

क्योंकि.... एक सामान्य जनधारणा है कि ........महाभारत एक कुरूवंश में राजा दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला के प्रतापी पुत्र ......... भरत के नाम पर इस देश का नाम "भारतवर्ष" पड़ा...... परन्तु इसका साक्ष्य उपलब्ध नहीं है...!

लेकिन........ वहीँ हमारे पुराण इससे अलग कुछ अलग बात...... पूरे साक्ष्य के साथ प्रस्तुत करता है......।

आश्चर्यजनक रूप से......... इस ओर कभी हमारा ध्यान नही गया..........जबकि पुराणों में इतिहास ढूंढ़कर........ अपने इतिहास के साथ और अपने आगत के साथ न्याय करना हमारे लिए बहुत ही आवश्यक था....।

परन्तु , क्या आपने कभी इस बात को सोचा है कि...... जब आज के वैज्ञानिक भी इस बात को मानते हैं कि........ प्राचीन काल में साथ भूभागों में अर्थात .......महाद्वीपों में भूमण्डल को बांटा गया था....।

लेकिन ये सात महाद्वीप किसने और क्यों तथा कब बनाए गये.... इस पर कभी, किसी ने कुछ भी नहीं कहा ....।

अथवा .....दूसरे शब्दों में कह सकता हूँ कि...... जान बूझकर .... इस से सम्बंधित अनुसंधान की दिशा मोड़ दी गयी......।

परन्तु ... हमारा ""जम्बूदीप नाम "" खुद में ही सारी कहानी कह जाता है ..... जिसका अर्थ होता है ..... समग्र द्वीप .

इसीलिए.... हमारे प्राचीनतम धर्म ग्रंथों तथा... विभिन्न अवतारों में.... सिर्फ "जम्बूद्वीप" का ही उल्लेख है.... क्योंकि.... उस समय सिर्फ एक ही द्वीप था...
साथ ही हमारा वायु पुराण ........ इस से सम्बंधित पूरी बात एवं उसका साक्ष्य हमारे सामने पेश करता है.....।

वायु पुराण के अनुसार........ त्रेता युग के प्रारंभ में ....... स्वयम्भुव मनु के पौत्र और प्रियव्रत के पुत्र ने........ इस भरत खंड को बसाया था.....।

चूँकि महाराज प्रियव्रत को अपना कोई पुत्र नही था......... इसलिए , उन्होंने अपनी पुत्री के पुत्र अग्नीन्ध्र को गोद ले लिया था....... जिसका लड़का नाभि था.....!

नाभि की एक पत्नी मेरू देवी से जो पुत्र पैदा हुआ उसका नाम........ ऋषभ था..... और, इसी ऋषभ के पुत्र भरत थे ...... तथा .. इन्ही भरत के नाम पर इस देश का नाम...... "भारतवर्ष" पड़ा....।

उस समय के राजा प्रियव्रत ने ....... अपनी कन्या के दस पुत्रों में से सात पुत्रों को......... संपूर्ण पृथ्वी के सातों महाद्वीपों के अलग-अलग राजा नियुक्त किया था....।
राजा का अर्थ उस समय........ धर्म, और न्यायशील राज्य के संस्थापक से लिया जाता था.......।

इस तरह ......राजा प्रियव्रत ने जम्बू द्वीप का शासक .....अग्नीन्ध्र को बनाया था।
इसके बाद ....... राजा भरत ने जो अपना राज्य अपने पुत्र को दिया..... और, वही " भारतवर्ष" कहलाया.........।

ध्यान रखें कि..... भारतवर्ष का अर्थ है....... राजा भरत का क्षेत्र...... और इन्ही राजा भरत के पुत्र का नाम ......सुमति था....।

इस विषय में हमारा वायु पुराण कहता है....—

सप्तद्वीपपरिक्रान्तं जम्बूदीपं निबोधत।
अग्नीध्रं ज्येष्ठदायादं कन्यापुत्रं महाबलम।।
प्रियव्रतोअभ्यषिञ्चतं जम्बूद्वीपेश्वरं नृपम्।।
तस्य पुत्रा बभूवुर्हि प्रजापतिसमौजस:।
ज्येष्ठो नाभिरिति ख्यातस्तस्य किम्पुरूषोअनुज:।।
नाभेर्हि सर्गं वक्ष्यामि हिमाह्व तन्निबोधत। (वायु 31-37, 38)

मैं अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए..... रोजमर्रा के कामों की ओर आपका ध्यान दिलाना चाहूँगा कि.....

हम अपने घरों में अब भी कोई याज्ञिक कार्य कराते हैं ....... तो, उसमें सबसे पहले पंडित जी.... संकल्प करवाते हैं...।

हालाँकि..... हम सभी उस संकल्प मंत्र को बहुत हल्के में लेते हैं... और, उसे पंडित जी की एक धार्मिक अनुष्ठान की एक क्रिया मात्र ...... मानकर छोड़ देते हैं......।

परन्तु.... यदि आप संकल्प के उस मंत्र को ध्यान से सुनेंगे तो.....उस संकल्प मंत्र में हमें वायु पुराण की इस साक्षी के समर्थन में बहुत कुछ मिल जाता है......।

संकल्प मंत्र में यह स्पष्ट उल्लेख आता है कि........ -जम्बू द्वीपे भारतखंडे आर्याव्रत देशांतर्गते….।

संकल्प के ये शब्द ध्यान देने योग्य हैं..... क्योंकि, इनमें जम्बूद्वीप आज के यूरेशिया के लिए प्रयुक्त किया गया है.....।

इस जम्बू द्वीप में....... भारत खण्ड अर्थात भरत का क्षेत्र अर्थात..... ‘भारतवर्ष’ स्थित है......जो कि आर्याव्रत कहलाता है....।

इस संकल्प के छोटे से मंत्र के द्वारा....... हम अपने गौरवमयी अतीत के गौरवमयी इतिहास का व्याख्यान कर डालते हैं......।

परन्तु ....अब एक बड़ा प्रश्न आता है कि ...... जब सच्चाई ऐसी है तो..... फिर शकुंतला और दुष्यंत के पुत्र भरत से.... इस देश का नाम क्यों जोड़ा जाता है....?

इस सम्बन्ध में ज्यादा कुछ कहने के स्थान पर सिर्फ इतना ही कहना उचित होगा कि ...... शकुंतला, दुष्यंत के पुत्र भरत से ......इस देश के नाम की उत्पत्ति का प्रकरण जोडऩा ....... शायद नामों के समानता का परिणाम हो सकता है.... अथवा , हम हिन्दुओं में अपने धार्मिक ग्रंथों के प्रति उदासीनता के कारण ऐसा हो गया होगा... ।

परन्तु..... जब हमारे पास ... वायु पुराण और मन्त्रों के रूप में लाखों साल पुराने साक्ष्य मौजूद है .........और, आज का आधुनिक विज्ञान भी यह मान रहा है कि..... धरती पर मनुष्य का आगमन करोड़ों साल पूर्व हो चुका था, तो हम पांच हजार साल पुरानी किसी कहानी पर क्यों विश्वास करें....?????

सिर्फ इतना ही नहीं...... हमारे संकल्प मंत्र में.... पंडित जी हमें सृष्टि सम्वत के विषय में भी बताते हैं कि........ अभी एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरहवां वर्ष चल रहा है......।

फिर यह बात तो खुद में ही हास्यास्पद है कि.... एक तरफ तो हम बात ........एक अरब 96 करोड़ आठ लाख तिरेपन हजार एक सौ तेरह पुरानी करते हैं ......... परन्तु, अपना इतिहास पश्चिम के लेखकों की कलम से केवल पांच हजार साल पुराना पढ़ते और मानते हैं....!

आप खुद ही सोचें कि....यह आत्मप्रवंचना के अतिरिक्त और क्या है........?????

इसीलिए ...... जब इतिहास के लिए हमारे पास एक से एक बढ़कर साक्षी हो और प्रमाण ..... पूर्ण तर्क के साथ उपलब्ध हों ..........तो फिर , उन साक्षियों, प्रमाणों और तर्कों केआधार पर अपना अतीत अपने आप खंगालना हमारी जिम्मेदारी बनती है.........।

हमारे देश के बारे में .........वायु पुराण का ये श्लोक उल्लेखित है.....—-हिमालयं दक्षिणं वर्षं भरताय न्यवेदयत्।तस्मात्तद्भारतं वर्ष तस्य नाम्ना बिदुर्बुधा:.....।।

यहाँ हमारा वायु पुराण साफ साफ कह रहा है कि ......... हिमालय पर्वत से दक्षिण का वर्ष अर्थात क्षेत्र भारतवर्ष है.....।

इसीलिए हमें यह कहने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए कि......हमने शकुंतला और दुष्यंत पुत्र भरत के साथ अपने देश के नाम की उत्पत्ति को जोड़कर अपने इतिहास को पश्चिमी इतिहासकारों की दृष्टि से पांच हजार साल के अंतराल में समेटने का प्रयास किया है....।

ऐसा इसीलिए होता है कि..... आज भी हम गुलामी भरी मानसिकता से आजादी नहीं पा सके हैं ..... और, यदि किसी पश्चिमी इतिहास कार को हम अपने बोलने में या लिखने में उद्घ्रत कर दें तो यह हमारे लिये शान की बात समझी जाती है........... परन्तु, यदि हम अपने विषय में अपने ही किसी लेखक कवि या प्राचीन ग्रंथ का संदर्भ दें..... तो, रूढि़वादिता का प्रमाण माना जाता है ।

और.....यह सोच सिरे से ही गलत है....।

इसे आप ठीक से ऐसे समझें कि.... राजस्थान के इतिहास के लिए सबसे प्रमाणित ग्रंथ कर्नल टाड का इतिहास माना जाता है.....।

परन्तु.... आश्चर्य जनक रूप से .......हमने यह नही सोचा कि..... एक विदेशी व्यक्ति इतने पुराने समय में भारत में ......आकर साल, डेढ़ साल रहे और यहां का इतिहास तैयार कर दे, यह कैसे संभव है.....?

विशेषत: तब....... जबकि उसके आने के समय यहां यातायात के अधिक साधन नही थे.... और , वह राजस्थानी भाषा से भी परिचित नही था....।

फिर उसने ऐसी परिस्थिति में .......सिर्फ इतना काम किया कि ........जो विभिन्न रजवाड़ों के संबंध में इतिहास संबंधी पुस्तकें उपलब्ध थीं ....उन सबको संहिताबद्घ कर दिया...।

इसके बाद राजकीय संरक्षण में करनल टाड की पुस्तक को प्रमाणिक माना जाने लगा.......और, यह धारणा बलवती हो गयीं कि.... राजस्थान के इतिहास पर कर्नल टाड का एकाधिकार है...।

और.... ऐसी ही धारणाएं हमें अन्य क्षेत्रों में भी परेशान करती हैं....... इसीलिए.... अपने देश के इतिहास के बारे में व्याप्त भ्रांतियों का निवारण करना हमारा ध्येय होना चाहिए....।

क्योंकि..... इतिहास मरे गिरे लोगों का लेखाजोखा नही है...... जैसा कि इसके विषय में माना जाता है........ बल्कि, इतिहास अतीत के गौरवमयी पृष्ठों और हमारे न्यायशील और धर्मशील राजाओं के कृत्यों का वर्णन करता है.....।

इसीलिए हिन्दुओं जागो..... और , अपने गौरवशाली इतिहास को पहचानो.....!

हम गौरवशाली हिन्दू सनातन धर्म का हिस्सा हैं.... और, हमें गर्व होना चाहिए कि .... हम हिन्दू हैं...!

Tuesday, January 6, 2015

Gallbladder ( पित्त की थेली) की पत्थरी निकालने का प्राकृतिक उपचार:-

Gallbladder ( पित्त की थेली)
की पत्थरी निकालने
का प्राकृतिक उपचार:-
पहले 5 दिन रोजाना 4 ग्लास एप्पल जूस
(डिब्बे वाला नहीं) और 4 या 5 सेव खायें .....
छटे दिन डिनर नां लें ....
इस छटे दिन शाम 6 बजे एक चम्मच
''सेधा नमक'' ( मैग्नेश्यिम सल्फेट ) 1 ग्लास गर्म
पानी के साथ लें ...
शाम 8 बजे फिर एक बार एक चम्मच '' सेंधा नमक
'' ( मैग्नेश्यिम सल्फेट ) 1 ग्लास गर्म पानी के
साथ लें ...
रात 10 बजे आधा कप जैतून ( Olive ) या तिल
(sesame)
का तेल - आधा कप ताजा नीम्बू रस में अच्छे से
मिला कर पीयें .....
सुबह स्टूल में आपको हरे रंग के पत्थर मिलेंगे ...
नोट: पालक, टमाटर, चुकंदर, भिंडी का सेवन न
करें।