Saturday, October 27, 2012

अपामार्ग ,/चिरचिटा के अनुभूत प्रयोग

बारिश के बाद बगीचों में अपने आप उगे इन सुन्दर पौधों पर जब नज़र पड़ी तो मन प्रसन्न हो गया . ये अपामार्ग के पत्ते गणेश पूजा , हरतालिका पूजा , मंगला गौरी पूजा आदि में पात्र पूजा के समय काम आते है .शायद पूजा इन सबके पत्र इसलिए इस्तेमाल होते होंगे ताकि हम इन आयुर्वेदिक रूप से महत्वपूर्ण पेड़ पौधों की पहचान भूले नहीं और ज़रुरत के समय इनका सदुपयोग कर सके .

इसे अघाडा ,लटजीरा या चिरचिटा भी कहा जाता है .

- इसकी दातून करने से दांत १०० वर्ष तक मज़बूत रहते है . इसके पत्ते चबाने से दांत दर्द में राहत मिलती है और गुहा भी धीरे धीरे भर जाती है .

- इसके बीजों का चूर्ण सूंघने से आधा सीसी में लाभ होता है . इससे मस्तिष्क में जमा हुआ कफ निकल जाता है और वहां के कीड़े भी झड जाते है .

- इसके पत्तों को पीसकर लगाने से फोड़े फुंसी और गांठ तक ठीक हो जाती है .

- इसकी जड़ को कमर में धागे से बाँध देने से प्रसव सुख पूर्वक हो जाता है . प्रसव के बाद इसे हटा देना चाहिए .

- ज़हरीले कीड़े काटने पर इसके पत्तों को पीसकर लगा देने से आराम मिलता है .

- गर्भ धारण के लिए इसकी १० ग्राम पत्तियाँ या जड़ को गाय के दूध के साथ ४ दिन सुबह ,दोपहर और शाम में ले . यह प्रयोग अधिकतर तीन बार करे .

- इसकी ५-१० ग्राम जड़ को पानी के साथ घोलकर लेने से पथरी निकल जाती है .

- अपामार्ग क्षार या इसकी जड़ श्वास में बहुत लाभ दायक है .

- इसकी जड़ के रस को तेल में पका ले . यह तेल कान के रोग जैसे बहरापन , पानी आना आदि के लिए लाभकारी है .

- इसकी जड़ का रस आँखों के रोग जैसे फूली , लालिमा , जलन आदि लिए अच्छा होता है .

- इसके बीज चावल की तरह दीखते है , इन्हें तंडुल कहते है . यदि स्वस्थ व्यक्ति इन्हें खा ले तो उसकी भूख -प्यास आदि समाप्त हो जाती है . पर इसकी खीर उनके लिए वरदान है जो भयंकर मोटापे के बाद भी भूख को नियंत्रित नहीं कर पाते .
 
 
 
बारिश के बाद बगीचों में अपने आप उगे इन सुन्दर पौधों पर जब नज़र पड़ी तो मन प्रसन्न हो गया . ये अपामार्ग के पत्ते गणेश पूजा , हरतालिका पूजा , मंगला गौरी पूजा आदि में पात्र पूजा के समय काम आते है .शायद पूजा इन सबके पत्र इसलिए इस्तेमाल होते होंगे ताकि हम इन आयुर्वेदिक रूप से महत्वपूर्ण पेड़ पौधों की पहचान भूले नहीं और ज़रुरत के समय इनका सदुपयोग कर सके .

इसे अघाडा ,लटजीरा या चिरचिटा भी कहा जाता है .

- इसकी दातून करने से दांत १०० वर्ष तक मज़बूत रहते है . इसके पत्ते चबाने से दांत दर्द में राहत मिलती है और गुहा भी धीरे धीरे भर जाती है .

- इसके बीजों का चूर्ण सूंघने से आधा सीसी में लाभ होता है . इससे मस्तिष्क में जमा हुआ कफ निकल जाता है और वहां के कीड़े भी झड जाते है .

- इसके पत्तों को पीसकर लगाने से फोड़े फुंसी और गांठ तक ठीक हो जाती है .

- इसकी जड़ को कमर में धागे से बाँध देने से प्रसव सुख पूर्वक हो जाता है . प्रसव के बाद इसे हटा देना चाहिए .

- ज़हरीले कीड़े काटने पर इसके पत्तों को पीसकर लगा देने से आराम मिलता है .

- गर्भ धारण के लिए इसकी १० ग्राम पत्तियाँ या जड़ को गाय के दूध के साथ ४ दिन सुबह ,दोपहर और शाम में ले . यह प्रयोग अधिकतर तीन बार करे .

- इसकी ५-१० ग्राम जड़ को पानी के साथ घोलकर लेने से पथरी निकल जाती है .

- अपामार्ग क्षार या इसकी जड़ श्वास में बहुत लाभ दायक है .

- इसकी जड़ के रस को तेल में पका ले . यह तेल कान के रोग जैसे बहरापन , पानी आना आदि के लिए लाभकारी है .

- इसकी जड़ का रस आँखों के रोग जैसे फूली , लालिमा , जलन आदि लिए अच्छा होता है .

- इसके बीज चावल की तरह दीखते है , इन्हें तंडुल कहते है . यदि स्वस्थ व्यक्ति इन्हें खा ले तो उसकी भूख -प्यास आदि समाप्त हो जाती है . पर इसकी खीर उनके लिए वरदान है जो भयंकर मोटापे के बाद भी भूख को नियंत्रित नहीं कर पाते .

1 comment:

  1. This plant is described in Atharveda also as most useful for keeping diseases away.

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